राजस्थान में 1857 की क्रांति Rajasthan Me 1857 Ki Kranti In Hindi
हेल्लो दोस्तों स्वागत है आपका हमारी website पर तो दोस्तों आज में आपको राजस्थान का एकीकरण Rajasthan Ka Ekikarn In Hindi उपलब्ध करूँगा जो हर बार परीक्षा में पूछे जाते है |राजस्थान का एकीकरण Rajasthan Ka Ekikarn In Hindi पिछले कई पेपरों में पूछे जा चुके है
Rajasthan Me 1857 Ki Kranti
- Rajasthan Me 1857 Ki Kranti
- सहायक संधि की नीति (Subsidiary Alliance)
- अधीनस्थ पार्थक्य की नीति
- विलय की नीति (Doctrine of lapse)
- नसीराबाद सैनिक छावनी में विद्रोह
- नीमच छावनी
- एरिनपुरा छावनी
- कोटा का विद्रोह
- रियासत टोंक में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम
- दूंगजी-जवाहर जी
- राजस्थान में 1857 की क्रांति
- प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का अंतः
Rajasthan Me 1857 Ki Kranti
सहायक संधि की नीति (Subsidiary Alliance): देशी राज्यों को अंग्रेजों की राजनीतिक परिधि में लाने के लिए गवर्नर जनरल लॉर्ड वैलेजली (1798-1805) द्वारा.प्रारम्भ की गई नीति जिसके तहत देशी राज्यों की आंतरिक सुरक्षा व विदेश नीति का उत्तरदायित्व अंग्रेजों पर था एवं जिसका खर्च संबंधित राज्य को उठाना पड़ता था।
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राजस्थान में सर्वप्रथम भरतपुर राज्य ने 29 सितम्बर 1803 ई.को लॉर्ड वैलेजली से सहायक संधि की परन्तु विस्तृत रक्षात्मक एवं आक्रमण संधि सर्वप्रथम अलवर रियासत ने 14 नवम्बर, 1803 को की थी। भारत में प्रथम सहायक संधि 1798 ई. में हैदराबाद के निजाम के साथ की गई थी।
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अधीनस्थ पार्थक्य की नीति (Subordinate Isolation)
मराठों व पिंडारियों की लूट-खसोट से तंग आकर राजस्थान के राजाओं ने गवर्नर जनरल लॉर्ड-हार्डिंग्स की 'अधीनस्थ पार्थक्य की नीति के तहत अंग्रेजों से संधियाँ की। सर्वप्रथम करौली राज्य ने 15 नवम्बर, 1817 को अंग्रेजों के साथ संक्षिप्त संधि की। परन्तु विस्तृत एवं व्यापक प्रभाव वाली यह
संधि सर्वप्रथम 26 दिसम्बर, 1817 को कोटा के प्रशासक झाला जालिमसिंह ने कोटा राज्य की ओर से की।
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वर्ष 1818 के अंत तक सभी रियासतों (सिरोही को छोड़कर) ने ईस्ट इंडिया कम्पनी से संधि की। ये संधियाँ कराने में चार्ल्स इस समय भारत के गवर्नर जनरल लॉर्ड केनिंग व राजस्थान मटेकॉफ व कर्नल टॉड की विशेष भूमिका रही।
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विलय की नीति (Doctrine of lapse): सन् 1848 में भारत के गवर्नर जनरल लॉर्ड डलहौजी द्वारा प्रारम्भ की गई नीति जिसके अनुसार किसी देशी राजा के नि:संतान मर जाने पर उसकी रियासत ब्रिटिश साम्राज्य में मिला दी जाती थी।
इसके तहत् सर्वप्रथम 1848 में सतारा को और फिर 1856 में अवध को अंगेजी राज्य में मिलाया गया।
ब्रिटिश सरकार द्वारा अधिकाधिक धन का दोहन व रियासतों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप किया गया। सेना में एनफील्ड राइफलों में चरबी लगे कारतूसों के प्रयोग ने सैनिकों की धार्मिक भावनाओं को आहत किया। यह क्रांति का तात्कालिक कारण था। Rajasthan Me 1857 Ki Kranti
1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का प्रारम्भ 10 मई, 1857 को हुआ- जब मेरठ छावनी में सेना ने विद्रोह कर दिया। देशी रियासतों ने अंतिम मुगल सम्राट बहादुरशाह जफर के नेतृत्व में यह जंग लड़ने का फैसला किया। के एजीजी जॉर्ज पेट्रिक्स लॉरेन्स थे।
राजस्थान में ब्यावर, नसीराबाद, नीमच, एरिनपुरा, देवलो व खैरवाड़ा (उदयपुर) में 6 सैनिक छावनियाँ थीं। - Rajasthan Me 1857 Ki Kranti
नसीराबाद सैनिक छावनी
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नसीराबाद सैनिक छावनी में विद्रोहः
• अजमेर राजस्थान में ब्रिटिश सत्ता का प्रमुख केन्द्र था। राजस्थान के ए.जी.जी. सर पैट्रिक लॉरेन्स ने अजमेर की सुरक्षा हेतु वहाँ नियुक्त 15वीं बंगाल नेटिव इन्फैंट्री को नसीराबाद भेजकर ब्यावर से दो मेर पलटनें अजमेर बुलवा ली।
साथ ही इसने कोटा कन्टिन्जेन्ट और डीसा से यूरोपियन पलटन अजमेर भेजे जाने के आदेश दे दिए। अजमेर से बंगाल नेटिव इन्फैन्ट्री हटाये जाने तथा मेर पलटन को वहाँ नियुक्त किए जाने को लेकर 15वीं बंगाल नेटिव इंफैन्ट्री के सैनिकों में असंतोष बढ़ने लगा।
संघर्ष को टालने के लिए अंग्रेज अधिकारियों ने अंग्रेज सैनिक व बम्बई लांसर्स को नसीराबाद छावनी में गश्त लगाने का निर्देश दिया। फलस्वरूप नसीराबाद छावनी में 28 मई, 1857 को 15वीं नेटिव इंफेन्ट्री के सैनिकों ने तोपखाने के सैनिकों को अपनी ओर मिलाकर विद्रोह करदिया तथा तोपों पर अधिकार कर लिया। एक अधिकारी न्यूबरी के सैनिकों ने टुकड़े कर दिए।
क्रांतिकारी सैनिकों ने छावनी को तहस-नहस करने के बाद दिल्ली की ओर प्रस्थान कर दिया। इन सैनिकों ने 18 जून को दिल्ली पहुँचकर वहाँ पर अंग्रेजी सेना पर आक्रमण कर उसे पराजित किया।अंग्रेज अधिकारी वाल्टरव हीथकोट ने मेवाड़ के सैनिकों की सहायता से इनका पीछा किया परन्तु उन्हें सफलता प्राप्त नहीं
नीमच छावनी
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नीमच छावनी: 3 जून, 1857 को नीमच के सैनिकों ने हीरासिंह के नेतृत्व में विद्रोह किया। उन्होंने 5 जून, 1857 को देवली व आगरा होते हुए दिल्ली के लिए कूच किया। अंग्रेज कैप्टन
हार्डकेसल व लेफ्टि. वाल्टर के नेतृत्व में जोधपुर की सेनाओं एवं कैप्टन शावर्स के नेतृत्व में मेवाड़ की सेनाओं ने इनका पीछा किया परन्तु वे क्रांतिकारियों को नहीं रोक पाये।
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दूंगलाः वह स्थान जहाँ पर नीमच से बच कर भागे हुए 40 अंग्रेज अफसर व उनके परिवारजनों को क्रांतिकारियों ने बंधक बना लिया था। सूचना मिलने पर मेजर शावर्स (मेवाड़ के पॉलिटिकल एजेन्ट) ने मेवाड़ की सेना की सहायता से उन्हेंछुड़ाकर उदयपुर पहुँचाया जहाँ महाराणा स्वरूप सिंह ने उन्हें पिछोला झील के जगमंदिर में शरण दी।
• नीमच छावनी के कप्तान मेकडोनाल्ड ने किले की रक्षा का प्रयास किया परन्तु असफल रहा।
एरिनपुरा छावनी:
Rajasthan Me 1857 Ki Kranti
एरिनपुरा छावनी: 21 अगस्त, 1857 को छावनी के पूर्बिया सैनिकों ने विद्रोह कर दिया।
आउवा का विद्रोहः मारवाड़ में विद्रोह का सर्वप्रमुख केन्द्र आउवा नामक स्थान था। आउवा के ठाकुर खुशालसिंह के नेतृत्व में क्रांतिकारियों ने जोधपुर के महाराजा तख्तसिंह व कैप्टन हीथकोट की सेना को आउवा के निकट बिथौड़ा (पाली) नामक स्थान पर 8 सितम्बर, 1857 को हराया।9
सितम्बर, 1857 को उन्होंने जोधपुर सेना के प्रमुख अनाड़सिंह को मार दिया।
• एजीजी पैट्रिक लॉरेन्स अजमेर से सेना लेकर गए लेकिन चेलावास स्थान पर उन्हें भी 18 सितम्बर, 1857 को हार का समाना करना पड़ा। इस युद्ध में जोधपुर का पॉलिटिकल एजेन्ट मोक मैसन भी लॉरेन्स के साथ था। मोकमैसन मारा गया और क्रांतिकारियों ने मैसन का सिर आउवा के किले के
दरवाजे पर लटका दिया।
जोधपुर लीजन के कुछ क्रांतिकारी 10 अक्टूबर, 1857 को आसोपा के ठाकुर शिवनाथ सिंह के नेतृत्व में दिल्ली की ओर चल पड़े। उन्होंने रेवाड़ी पर अधिकार कर लिया परन्तु आगे रास्ते में नारनौल में वे ब्रिगेडियर गेरार्ड के नेतृत्व वाली अंग्रेज सेना से 16 नवम्बर, 1857 को परास्त हो गये एवं ठाकुर शिवनाथ सिंह वापस आलनिया आ गये तथा उन्होंने आत्म समर्पण कर दिया।
उसके बाद गवर्नर जनरल लॉर्ड केनिंग ने कर्नल होम्स की अगुवाई में एक विशाल सेना आउवा भेजी। 20 जनवरी, 1858 को घमासान हुआ। क्रांतिकारी अंग्रेज सेना के आगे टिक न सके
और वहाँ से प्रस्थान कर गये। विजय की आशा न पाकर ठाकुर कुशाल सिंह 23 जनवरी, 1858 को रात्रि में किले का भार अपने छोटे भाई लाम्बिया कलां के पृथ्वीसिंह को सौंपकर भाग निकला।
पीछा करने गई अंग्रेजी सेना को सिरियारी घराने के प्रमुख ने 24 घंटे तक रोके रखा। 24 जनवरी, 1858 कोदुर्ग पर ब्रिटिश सेना का अधिकार हो गया। ठाकुर खुशालसिंह ने कोठारिया के रावत जोधसिंह के यहाँ जाकर शरण ली।
अंतत: उन्होंने 8 अगस्त, 1860 के दिन अंग्रेजों के समक्षनीमच में आत्म समर्पण किया। मेजर टेलर की अध्यक्षता में एक कमीशन ने उनके खिलाफ जाँच की। 10 नवम्बर, 1860 को उन्हें रिहा किया गया। 25 जुलाई, 1864 को ठाकुर कुशालसिंह का उदयपुर में स्वर्गवास हो गया।
कोटा का विद्रोहः
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कोटा का विद्रोहः
• राजस्थान में सन् 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में कोटा का योगदान सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण था। कोटा में अंग्रेजोंके विरुद्ध संघर्ष राजकीय सेना तथा आम जन ने किया। कोटा के पॉलिटिकल एजेन्ट मि. बर्टन थे।
नीमच में 3 जून, 1857 को भारतीय सैनिकों के संघर्ष को सूचना पाकर बर्टन कोटा, झालावाड़ तथा बूंदी की राजकीय सेनाओं को लेते हुए नीमच पहुँचे। अंग्रेजी सेना ने बिना किसी विरोध के नीमच छावनी पर अधिकार कर लिया।
• कोटा में जयदयाल एवं मेहराबखान ने 15 अक्टूबर, 1857 को क्रांति का बिगुल बजा दिया पॉलिटिकल एजेन्ट मि. बर्टन, उसके दो पुत्रों व एक डॉक्टर सैडलर काटम की हत्या कर दी गई। क्रांतिकारियों ने बर्टन का सिर धड़ से अलग कर दिया व इसका सारे शहर में खुला प्रदर्शन किया।
• कोटा के महाराव रामसिंह को उनके महल में नजरबन्द किया एवं कोटा राज्य की तोपों को अपने कब्जे में ले लिया। अब सारा शहर क्रांतिकारियों के नियंत्रण में हो गया। धीरे-धीरे संपूर्ण कोटा रियासत पर क्रांतिकारियों का अधिकार हो गया।
• जनवरी, 1858 में करौली की सेना ने आकर कोटा महाराव को क्रांतिकारियों की नजरबंदी से मुक्त करवाया। मार्च, 1858 में मेजर जनरल रॉबर्ट्स के नेतृत्व में अंग्रेजी सेना ने कोटा की सेना पर आक्रमण किया। 30 मार्च, 1858 को कोटा पर अंग्रेजी सेना का अधिकार हो गया।
जयदयाल और मेहराब खाँ को फाँसी दे दी गई। 6 माह तक क्रांतिकारियों के अधीन रहने के बाद कोटा पुन: महाराव को प्राप्त हुआ। इस प्रकार कोटा में सर्वाधिक भीषण और व्यापक विप्लव हुआ। करौली के महारावल मदनपाल की सेना भी मेजर जनरल रॉबर्ट्स के साथ थी
Rajasthan Me 1857 Ki Kranti
• अंग्रेजों के विरुद्ध इतना सुनियोजित व सुनियंत्रित संघर्ष राजस्थान में अन्यत्र कहीं नहीं हुआ था।
• कोटा के महाराव रामसिंह को उनके महल में नजरबन्द किया एवं कोटा राज्य की तोपों को अपने कब्जे में ले लिया। अब सारा शहर क्रांतिकारियों के नियंत्रण में हो गया। धीरे-धीरे संपूर्ण कोटा रियासत पर क्रांतिकारियों का अधिकार हो गया।
• जनवरी, 1858 में करौली की सेना ने आकर कोटा महाराव को क्रांतिकारियों की नजरबंदी से मुक्त करवाया। मार्च, 1858 में मेजर जनरल रॉबर्ट्स के नेतृत्व में अंग्रेजी सेना ने कोटा की सेना पर आक्रमण किया। 30 मार्च, 1858 को कोटा पर अंग्रेजी सेना का अधिकार हो गया। जयदयाल और मेहराब खाँ को फाँसी दे दी गई।
6 माह तक क्रांतिकारियों के अधीन रहने के बाद कोटा पुन: महाराव को प्राप्त हुआ। इस प्रकार कोटा में सर्वाधिक भीषण और व्यापक विप्लव हुआ। करौली के महारावल मदनपाल की सेना भी मेजर जनरल रॉबर्ट्स के साथ थी
• अंग्रेजों के विरुद्ध इतना सुनियोजित व सुनियंत्रित संघर्ष राजस्थान में अन्यत्र कहीं नहीं हुआ था।
रियासत टोंक में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम :
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टोक रियासत की स्थापना 1817 में नवाब अमीर खाँ व तत्कालीन अंग्रेज शासकों के मध्य हुए एक समझौते के जरिए हुई थी। इस रियासत के द्वितीय नवाब वजीर खां (वजीरुद्दौला खाँ ) के शासन काल ( 1834-1864 ई.) में भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम हुआ था।
यद्यपि नवाब वजीर खाँ अंग्रेज सरकार के पक्षधर थे किन्तु रियासत टोंक के स्वतंत्रता प्रेमी नवाब के सगे संबंधियों एवं सेना के बड़े भाग ने बगावत करते हुए स्वतंत्रता सैनानियों का साथ दिया। तांत्या टोपे के सेना सहित वहाँ आने पर टोंक के क्रांतिकारी उनके साथ हो गये। बनास नदी के किनारे और अमीरगढ़ के किले के निकट विद्रोहियों और नवाब की सेना में भयंकर संघर्ष हुआ।
नवाब के दीवान फैजुल्ला खाँ को पकड़कर विद्रोहियों ने तोपखाने पर अधिकार कर लिया। नगर को घेरकर टोंक राज्य पर अपने शासन की घोषणा कर दी जो लगभग 6 माह तक रहा। अंत में जयपुर के रेजीडेन्ट ईडन के बड़ी सेना लेकर
पहुँचने पर टोंक मुक्त हो सका। टोंक के विद्रोह में मीर आलम खाँ व उनके परिवार ने अग्रणी भूमिका निभाई। Rajasthan Me 1857 Ki Kranti
धौलपुर में क्रांतिः
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• धौलपुर में क्रांतिः धौलपुर में ग्वालियर व इन्दौर के विद्रोही सैनिकों ने राव रामचन्द्र एवं हीरालाल के नेतृत्व में स्थानीय सैनिकों की सहायता से विद्रोह कर राज्य पर अपना अधिकार कर लिया। दिसम्बर, 1857 तक धौलपुर का शासक शक्ति व अधिकारविहीन शासक की भाँति रहा। 2 माह बाद पटियाला की सेना ने आकर विद्रोह को समाप्त किया।

Rajasthan Me 1857 Ki Kranti
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तात्या टोपेः तात्या टोपे पेशवा बाजीराव के उत्तराधिकारी नाना साहब का स्वामिभक्त सेवक था। 1857 की क्रांति में वह ग्वालियर का विद्रोही नेता था। तात्या टोपे 23 जून, 1857 ई. को अलीपुर में अंग्रेजों के हाथों परास्त होने के बाद राजस्थान के ब्रिटिश विरोधी लोगों से सहयोग प्राप्त करने की आकांक्षा से राजस्थान आया था लेकिन उन्हें वांछित सफलता नहीं मिली।
टोपे सर्वप्रथम 8 अगस्त, 1857 को भीलवाड़ा आये। वहाँ १ अगस्त, 1857 को उनका कोठारी नदी के तट पर कुआड़ा नामक स्थान पर जनरल रॉबर्ट्स की सेना से युद्ध हुआ, परन्तु उन्हें पीछे हटना पड़ा। उसके बाद तात्या टोपे सेना सहित झालावाड़ पहुँचे तथा वहाँ झालावाड़ की सेना उनके साथ मिल गई तथा उन्होंने वहाँ के शासक पृथ्वीसिंह को अपदस्थ कर झालावाड़ पर अधिकार कर लिया।
इसके बाद तांत्या छोटा उदयपुर होते हुए वापस ग्वालियर लौट गये। दिसंबर, 1857 में तात्या टोपे
पुनः मेवाड़ (राजस्थान) आये तथा 11 दिसम्बर, 1857 को उनकी सेना ने बाँसवाड़ा शहर पर अधिकार कर लिया। महारावल शहर छोड़कर चले गये। तात्या इसके बाद सलूंबर, भीण्डर होते हुए बन्दा के नवाब के साथ टोंक पहुँचे जहाँ अमीरगढ़ के किले केनिकट बनास नदी के किनारे उनका टोक के नवाब की सेना सेयुद्ध हुआ।
क्रांतिकारियों ने तोपखाने पर अधिकार कर टोंक में अपने शासन की घोषणा कर दी इसकी सूचना मिलते ही मेजर ईडन अंग्रेज सेना लेकर टोंक की तरफ आ गये। तात्या टोपे टोंक छोड़कर नाथद्वारा की ओर चले गये अन्त में तात्या टोपे को नरवर के जागीरदार मानसिंह नरूका की सहायता से नरवर के जंगलों में पकड़ लिया गया और 18 अप्रैल,
1859 को उन्हें सिप्री में फाँसी दे दी गई।

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दूंगजी-जवाहर जी
• शेखावाटी में सर्वप्रथम स्वतंत्रता संग्राम का नेतृत्व बठोठ पाटोदा (सीकर) के ठाकुर डूंगरसिंह व उनके भतीजे जवाहर सिंह शेखावत ने किया। सन् 1847 में डूंगजी-जवाहरजी ने छापामार लड़ाइयों
से अंग्रेजों को बुरी तरह परेशान किया। उन्हें इस क्षेत्र के लोग लोक देवता के रूप में पूजते हैं।
अंग्रेजों ने डूंगजी को आगरा के किले में कैद कर दिया था। जवाहरजी ने उन्हें लोटिया जाट और करणिया मीणा के साथ मिलकर कैद से छुड़ाया। कैद से छूटने के बाद डूंगजी- जवाहरजी ने 1847 में नसीराबाद छावनी को बुरी तरह से नष्ट कर दिया
अंग्रेजो ने अपने ही स्तर पर डूंगरसिंह का पता लगाने की बहुत कोशिश की, पर असफल रहे। अंत में अंग्रेजों ने डूंगजी के साले भैरोसिंह गौड़ को बहकाकर तथा लालच देकर अपनी ओर मिला लिया। डूंगजी को उनके ससुराल झड़वासा में शराब पिलाकर भैरोसिंह ने उन्हें सोते हुए गिरफ्तार
करवा दिया। (डूगजी-जवाहरजी इतने वीर पुरुष थे कि फतेहपुर (शेखावाटी) में आज भी लोग इन्हें लोक-देवता के रूप में श्रद्धापूर्वक पूजते हैं। शेखावाटी में भोपे भी इनकी विरुदावली गाते हैं।
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प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का अंतः सितम्बर, 1857 को मुगल सम्राट बहादुर शाह जफर को पकड़ लिया गया और दिल्ली के लाल किले पर अंग्रेजी आधिपत्य हो गया। इस प्रकार देश को गुलामी से मुक्त कराने का प्रथम प्रयास असफल रहा। पर्याप्त नियोजन व सूझबूझ का अभाव, अधिकांश नरेशों द्वारा ब्रिटिश शासकों को सहयोग, क्रांतिकारियों के पास धन,रसद व हथियारों की कमी तथा क्रांतिकारियों में अखिल भारतीय दृष्टिकोण व समन्वय का अभाव आदि क्रांति
के असफल रहने के प्रमुख कारण थे।
Rajasthan Me 1857 Ki Kranti
बीकानेर के राजा सरदारसिंह राजस्थान के एकमात्र ऐसे शासक थे जो स्वयं अपनी सेना लेकर अंग्रेजों की सहायतार्थ अपनी रियासत से बाहर गए और 'बाडलू' नामक स्थान पर क्रांतिकारियों की सेना को परास्त किया।
• करौली के शासक मदनपाल ने अपनी सेना कोटा कीक्रांति को दबाने हेतु भेजी थी।
• जयपुर महाराजा सवाई रामसिंह द्वितीय ने अपनी सेना अंग्रेजों की सहायतार्थ मेजर ईडन के पास भिजवाई थी।
• इस प्रकार बीकानेर नरेश सरदार सिंह, करौली एवं जयपुर रियासतों ने क्रांतिकारियों को कुचलने हेतु प्रत्यक्ष रूप से अंग्रेजों को सैनिक सहायता प्रदान की। क्रांति का तात्कालिक प्रभावः ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया ने 2 अगस्त, 1858 को भारत में ईस्ट इंडिया कम्पनी का शासन समाप्त कर यहाँ का शासन सीधे ब्रिटिश ताज के अधीन कर दिया। गवर्नर जनरल का पदनाम गवर्नर जनरल
एवं वायसराय हो गया। भारत का प्रथम वॉयसराय व गवर्नर जनरल लॉर्ड केनिंग को नियुक्त किया गया।
अमरचन्द्र बांठिया : देश के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में ब्रिटिशसत्ता द्वारा फांसी पर लटकाए गए प्रथम शख्स। इन्हें दूसरा भामाशाह भी कहते हैं
दोस्तों यदि आपको राजस्थान में 1857 की क्रांति Rajasthan Me 1857 Ki Kranti In Hindi यह पोस्ट अच्छी लगी हो तो इस राजस्थान में 1857 की क्रांति Rajasthan Me 1857 Ki Kranti In Hindi पोस्ट को Like & Comment करे तथा Share भी करे और हमे बताये भी ये पोस्ट आपको केसी लगी धन्यवाद – Pankaj Taak
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