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Sarso Anusandhan Kendra Sewar Bharatpur - सरसों अनुसंधान निदेशालय सेवर भरतपुर
Sarso Anusandhan Kendra Sewar Bharatpur का निर्माण -
देश में तिलहनों में सुधार करने के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा अप्रैल, 1967 में अखिल भारतीय तिलहन समन्वित अनुसंधान परियोजना (एआईसीआरपीओ) की स्थापना की गई थी।
Sarso Anusandhan Kendra Sewar Bharatpur के कार्य -
राई-सरसों के आनुवांशिक संसाधनों और उस पर जानकारी के लिए राष्ट्रीय निक्षेपागार। तेल और बीज-आहार की उत्पादकता और गुणवत्ता में सुधार करने के लिए बुनियादी, कार्यनीतिक और अनुप्रयुक्त अनुसंधान।
Sarso Anusandhan Kendra Sewar कहा पर स्थापित है
निदेशालय आगरा-जयपुर राजमार्ग पर भरतपुर रेलवे स्टेशन और बस अड्डे से क्रमशः 7 और 3 किमी. की दूरी पर स्थित है। भरतपुर, जिसे केवलदेव राष्ट्रीय पक्षी अभयारण्य के लिए समूचे विश्व में जाना जाता है, दिल्ली-मथुरा मुख्य रेलवे लाइन पर मथुरा से केवल 35 किमी की दूरी पर है
Sarso Anusandhan Kendra Sewar कहा पर स्थापित है
निदेशालय आगरा-जयपुर राजमार्ग पर भरतपुर रेलवे स्टेशन और बस अड्डे से क्रमशः 7 और 3 किमी. की दूरी पर स्थित है।
Sarso Anusandhan Kendra Sewar Bharatpur का निर्माण
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा अप्रैल, 1967 में Sarso Anusandhan Kendra Sewar Bharatpur का निर्माण किया गया |
Source - www.drmr.res.in
सरसों अनुसंधान निदेशालय: एक परिदृश्य
देश में तिलहनों में सुधार करने के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा अप्रैल, 1967 में अखिल भारतीय तिलहन समन्वित अनुसंधान परियोजना (एआईसीआरपीओ) की स्थापना की गई थी। पांचवीं योजना (1974-79द्) में तिलहनों, विशेष रूप से राई-सरसों पर अनुसंधान कार्यक्रम को और भी सुदृढ़ बनाया गया। तद्नुसार, 28 जनवरी 1981 को हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार में राई-सरसों के लिए प्रथम परियोजना समन्वय इकाई की स्थापना की गई।
सातवीं योजना (1992-97) के दौरान, भा. कृ.अनु.प. ने 1990 में गठित कार्यबल की सिफारिश के आधार पर राज्य कृषि विभाग,राजस्थान सरकार के अनुकूलन परीक्षण केन्द्र, सेवर, भरतपुर में राई-सरसों पर आधारभूत, रणनीतिक और अनुप्रयुक्त अनुसंधान संचालित करने के लिए 20 अक्तूबर, 1993 को राष्ट्रीय सरसों अनुसंधान केन्द्र की स्थापना की। ग्यारहवीं योजना (2007-12) में इस केन्द्र को सरसों अनुसंधान निदेशालय के रूप में उन्नयित किया गया। आधारभूत जानकारी और सामग्रियां सृजित करने के अलावा, यह निदेशालय पारिस्थिकीय दृष्टि से सुदृढ़ और आर्थिक दृष्टि से अर्थक्षम कृषि उत्पादन और संरक्षण प्रौद्योगिकियां विकसित करने के कार्य में लगा है।
राई-सरसों के उत्पादन और उत्पादकता में समृद्धि करने के लिए अ.भा.स.अनु.प. (राई-सरसों) के तत्वाधान में आवश्यकता आधारित सत्यापन करने के अलावा निदेशालय को समूचे देश में फैले 11 मुख्य और 12 उपमुख्य केन्द्रो के एक विशाल नेटवर्क के माध्यम से अनुसंधान कार्यक्रमों की योजना बनाने उनके समन्वयन और निष्पादन का उत्तरदायित्व भी सौंपा गया है।
उद्देश्य
- आनुवांशिक संसाधनों के बेहतर दोहन के लिए अग्रणी अनुसंधान का प्रयोग करना।
- उपयुक्त उत्पादन, संरक्षण प्रौद्योगिकियों का विकास और उनकी पहचान।
- प्रौद्योगिकी आकलन, परिष्करण और प्रचार-प्रसार के माध्यम से क्षमता निर्माण और ज्ञान प्रबंधन।
कार्य
- राई-सरसों के आनुवांशिक संसाधनों और उस पर जानकारी के लिए राष्ट्रीय निक्षेपागार।
- तेल और बीज-आहार की उत्पादकता और गुणवत्ता में सुधार करने के लिए बुनियादी, कार्यनीतिक और अनुप्रयुक्त अनुसंधान।
- विभिन्न परिस्थितियों के लिए पारिस्थिकीय दृष्टि से सुदृढ़ और आर्थिक दृष्टि से अर्थक्षम उत्पादन और संरक्षण प्रौद्योगिकियों का विकास।
- बहु-स्थानिक परीक्षण और समन्वय पर आधारित स्थान-विशिष्ट अंतर्विषयक जानकारी का सृजन।
- उपर्युक्त उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए संबंधों को स्थापित करना तथा राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग का संवर्धन करना।
- तकनीकी विशेषज्ञता और परामर्श का विस्तार करना।
Sarso Anusandhan Kendra Sewar Bharatpur - सरसों अनुसंधान निदेशालय
निदेशालय आगरा-जयपुर राजमार्ग पर भरतपुर रेलवे स्टेशन और बस अड्डे से क्रमशः 7 और 3 किमी. की दूरी पर स्थित है। भरतपुर, जिसे केवलदेव राष्ट्रीय पक्षी अभयारण्य के लिए समूचे विश्व में जाना जाता है, दिल्ली-मथुरा मुख्य रेलवे लाइन पर मथुरा से केवल 35 किमी की दूरी पर है तथा जयपुर, दिल्ली और आगरा से बस और रेल सेवा से भलीभांति जुड़ा है। निदेशालय का परिसर 44.21 है. क्षेत्र में फैला है जिसके लगभग 80 प्रतिशत भाग में प्रयोगों को संचालित किया जाता है और शेष भाग में प्रशासनिक-सह-प्रयोगशाला भवन तथा आवासीय परिसर है।
यह निदेशालय 77.27˚ पू. देशांतर, 27.12˚ उ देशांतर अक्षांश और समुद्र तल से 178.37 मीटर ऊपर स्थित है भाकृअनुप-सरसों अनुसंधान निदेशालय, विभिन्न अनुसंधान और सहायक इकाइयों के माध्यम से (देखिए संगठन चित्र) उत्पादन प्रणाली, अनुसंधान को सहयोग प्रदान करने के लिए एक धुरी के रूप में कार्य करता है तथा तोरिया (पीली सरसों, तोरिया, तारामीरा, गोभी सरसों) और सरसों(भारतीय सरसों और इथियोपियाई सरसों) की फसलों के लिए प्रौद्योगिकियों और प्रजनन सामग्री का विकास करता है।
बीज पखवाड़ा का आयोजन
किसानों को सरसों की उन्नत किस्मों के बीज वितरण के लिए निदेशालय में प्रत्येक वर्ष बीज पखवाड़ा का आयोजन सितम्बर माह में किया जाता है | पखवाड़े में निदेशालय द्वारा पैदा किया गया सरसों की उन्नत किष्मों का बीज किसानों को उचित मूल्य (न लाभ न हानि) पर पहले आओ-पहले पाओ के आधार पर वितरित किया जाता है | इस अवसर पर गोष्ठिओं के माध्यम से किसानों को फसल के बारे में तकनीकी ज्ञान भी दिया जाता है |
सरसों की किस्मों का उत्पादन बीज
किस्म का नाम | उत्पादकता (क्वंटल/ हेक्टेयर) |
एनआरसीएचबी 101/ NRCHB 101 | 13-15 (late sown condition) |
डीआरएमआरआईजे 31/ DRMRIJ-31 | 22-27 |
डीआरएमआर 150-35/ DRMR 150-35 | 12-18 |
NRCYS-05-02 (Yellow Sarson) | 13-18 |
आर एच् -७४९/ RH-749 | 24-28 |
आर एच्-७२५/RH-725 | 26-27 |
सरकार ने सरसों तेल (Mustard Oil) में किसी अन्य तेल की मिलावट पर रोक लगा दी है. भारतीय खाद्य संरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI) द्वारा सरसों तेल में मिलावट (Blending mustard oil) पर लगाई गई रोक एक अक्टूबर से लागू होगी. सरकार के इस फैसले से उपभोक्ताओं के साथ-साथ सरसों पैदा करने वाले किसानों को भी फायदा होगा.
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के तहत आने वाले राजस्थान के भरतपुर स्थित सरसों अनुसंधान निदेशालय (Mustard Research Directorate in Bharatpur) के निदेशक डॉक्टर पीके राय ने बताया कि यह फैसला आम आदमी के साथ-साथ किसानों के हित में है.
उन्होंने बताया कि सरकार के इस फैसले से लोगों को जहां शुद्ध सरसों का तेल (Pure Mustard Oil) खाने को मिलेगा वहीं, सरसों की खपत बढ़ने से किसानों को उनकी फसल का अच्छा दाम मिलेगा जिससे किसान सरसों की खेती में दिलचस्पी लेंगे. सरसों की बुवाई 15 अक्टूबर से शुरू होने वाली है.
खाद्य तेल उद्योग संगठन सॉल्वेंट एक्स्ट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के कार्यकारी निदेशक डॉ. बी. वी. मेहता ने कहा कि सरसों तेल में जो अल्डटरेशन हो रहा है उस पर रोक लगाने की जरूरत है जबकि ब्लेंडिंग पर रोक नहीं होनी चाहिए. उन्होंने बताया कि एफएसएसएआई ने जो सैंपल लिया है उसमें बहुत ज्यादा मिलावट थी इसलिए यह फैसला लिया गया है.
ICAR - Indian Council of Agricultural Research
The Indian Council of Agricultural Research (ICAR) established the National Research Centre on Rapeseed-Mustard (NRCRM) on October 20, 1993, to carry out basic, strategic and applied research on rapeseed-mustard. Besides, generating basic knowledge and material, it also engages in developing ecologically sound and economically viable agro production and protection technologies. The Centre has also the responsibility to plan, coordinate and execute the research programmes through wide network of 22 main and sub-centres across the country, to augment the production and productivity of rapeseed-mustard.
In February 2009, the ICAR re-designated NRCRM as the Directorate of Rapeseed Mustard Research (DRMR). The DRMR functions as a fulcrum to support the production system research for rapeseed (Brown sarson, yellow sarson, toria, taramira, gobhi sarson) and mustard (black mustard, Ethiopian mustard and Indian mustard) group of crops through research, service and support units
Vision
Brassica Science for oil and nutritional security.
Mission
Harnessing science and resources for sustainable increase in productivity
Mandates
- Basic, strategic and adaptive research on rapeseed-mustard to improve the productivity and quality.
- Provide equitable access to information, knowledge and genetic material to develop improved varieties and technologies.
- Coordination of applied research develop location specific varieties and technologies
- Technology dissemination and capacity building
Sarso Anusandhan Kendra Sewar Bharatpur - सरसों अनुसंधान निदेशालय सेवर भरतपुर
Historically the brassicas are one of the earliest domesticated crop plants by man. It is mentioned in several ancient scripture and literature and might have been cultivated as early as 5000 BC. There is evidence of its cultivation in Neolithic age (Chang 1968). Seeds of mustard were found from the Channhu- daro of Harrapan civilization ca. 2300-1750 BC (Allchin 1969). Aryans used Brassica species as condiments and for oil. However, the use of oil was still commoner with the non-Aryans than the Aryans. Thus it is evident that in a period of over 3500 years, mustard came to occupy an important place in the diets of Indian people as a source of oil and vegetable.
DRMR ORGANOGRAM
The various functions or activities carried out by the DRMR are indicated in the mission, mandate, and objectives of the directorate are guided or supported by the various committees constituted by the ICAR and locally at directorate.
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