( Rajasthan ke janjaati v Kisan aandolan In Hindi ) :-Hello friends, welcome to our website, so friends, today in this post we will provide various information related to the tribal and farmer movement in Rajasthan, related to which questions are asked in the examination.Questions related to the topic of tribal and farmer movement in Rajasthan have been asked in many previous papers like Rajasthan Patwari, Gram Sevak Forest Department, Rajasthan Police and various departments of Rajasthan, so today in this post you will get to read tribal and farmer movement in Rajasthan. So read the post completely and if you like this post, then share it on your social media account.
हेल्लो दोस्तों स्वागत है आपका हमारी website पर तो दोस्तों आज हम इस पोस्ट में राजस्थान में जनजाति व किसान आन्दोलन से संबंधित विभिन जानकारी उपलब्ध करूँगा जिससे संबंधित Question परीक्षा में पूछे जाते है | राजस्थान में जनजाति व किसान आन्दोलन टॉपिक से संबंधित Question पिछले कई पेपरों जैसे राजस्थान पटवारी ग्राम सेवक वन विभाग राजस्थान पुलिस व राजस्थान के विभिन्न विभागों से संबंधित परीक्षाओं में पूछे जा चुके है तो आज इस पोस्ट में आपको राजस्थान में जनजाति व किसान आन्दोलन पढने को मिलेंगे तो पोस्ट को पूरा पढ़िए व आपको यह पोस्ट अच्छी लगे तो अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर शेयर करे ...|
Table of Contents
राजस्थान में जनजाति व किसान आन्दोलन In Hindi
- गुरु गोविंद गिरी का भगत आंदोलन
- एकी आंदोलन / भोमट भील आंदोलन
- मीणा आंदोलन
- बिजोलिया किसान आंदोलन
- बेंगू किसान आंदोलन
- जाट किसान आंदोलन
- नींमुचणा किसान आंदोलन व हत्याकांड
- भरतपुर में बेगार के खिलाफ आंदोलन
- अलवर किसान आंदोलन
- बूंदी किसान आंदोलन
- डाबड़ा कांड
- दूधवाखारा किसान आंदोलन
- राजगढ़ आंदोलन
- कांगड़ किसान आंदोलन
राजस्थान के जनजातीय आंदोलन
गुरु गोविंद गिरी का भगत आंदोलन - राजस्थान के डूंगरपुर में बांसवाड़ा में भील जनजाति में सामाजिक जागृति उत्पन्न करने वाली जनजाति को संगठित करने हेतु गुरु गोविंद गिरी द्वारा चलाया गया आंदोलन इनका जन्म डूंगरपुर राज्य के बांसिया गांव में 20 दिसंबर 1858 को एक बंजारा परिवार में हुआ गुरु गोविंद गिरी ने 1883 ईस्वी में संप सभा की स्थापना की उन्होंने मानगढ़ पहाड़ी बांसवाड़ा को अपना कार्य स्थल बनाया इनके शिष्य भगत कहलाए
17 नवंबर 1913 को मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन मानगढ़ पहाड़ी पर एकत्रित हजारों आदिवासी भीलों पर कर्नल शटन के आदेश पर रियासत की सैनिक टुकड़ियों ने फायरिंग की जिसमें करीब 1500 भील मारे गए गोविंद गिरी व डूंगर के पटेल पुंजा धीर को बंदी बना लिया गया पूंजा धीर पहला व्यक्ति था जिसने आत्मसमर्पण करते हुए अन्य को भी आत्मसमर्पण के लिए प्रेरित किया दोनों को संतरामपुर में अहमदाबाद की साबरमती जेल में रखा गया इस प्रकार भील क्रांति को निर्दयतपूर्वक कुचल दिया गया मानगढ़ हत्याकांड राजस्थान में जलियांवाला बाग हत्याकांड के नाम से जाना जाता है
मुंबई सरकार ने बेलगाम के अतिरिक्त सेशन जज फ्रेडरिक विलियम एलिसन को तथा एडीजी राजपूताना ने मेजर हयूज ओगस्टन केपेल गफ को ट्रिब्यूनल का सदस्य मनोनीत किया 2 फरवरी 1914 को यह ट्रिब्यूनल गठित किया गया इस ट्रिब्यूनल ने संतरामपुर में मुकदमे की सुनवाई की गोविंद गिरी को मृत्युदंड व पूंजा भील को आजीवन कारावास की सजा दी गई
इस फैसले के विरुद्ध की जाने वाली अपीलों की सुनवाई तक उन्हें संतरामपुर के कारा गृह में रखा गया 28 फरवरी 1914 को आर पी बारो कमिश्नरी डिवीजन संतरामपुर राज्य में डोली नामक स्थान पर अपीलों की सुनवाई की गोविंद गिरी की सजा को आर पी बालों ने आजीवन कारावास की सजा में बदल दिया बाद में वायसराय ने इसे 10 वर्ष के कठोर कारावास की सजा में बदल दिया
फिर सजा को कम करते हुए उन्हें 12 जुलाई 1923 को संतरामपुर जेल से इस शर्त पर रिहा कर दिया कि वह संतरामपुर डूंगरपुर बांसवाड़ा कुशलगढ़ राज्य में प्रवेश नहीं करेगे गुरु गोविंद गिरी जेल से छूटने के बाद अहमदाबाद संभाग में जिले के जालोद तालुका के कंबोई गांव में रहने लगे वही 30 अक्टूबर 1931 को उनका देहांत हो गया अब उनकी समाधि स्थल पर एक चबूतरा बना हुआ है
मानगढ़ धाम में 2 सितंबर 2002 को तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री अशोक गहलोत द्वारा शहीद स्मारक का लोकार्पण किया गया मानगढ़ धाम राजस्थान गुजरात और मध्य प्रदेश के आदिवासियों में अपार आस्था का केंद्र स्थल है मानगढ़ हिल पर गोविंद गुरु के नाम पर बोटैनिकल गार्डन का भी उद्घाटन किया गया 17 नवंबर 2012 को तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री अशोक गहलोत ने मानगढ़ फाउंडेशन के तत्वाधान में आयोजित शहादत शताब्दी श्रदांजली समारोह में मानगढ़ धाम गुरु गोविंद गिरी की प्रतिमा का अनावरण किया
एकी आंदोलन / भोमट भील आंदोलन - श्री मोतीलाल तेजावत द्वारा भील क्षेत्र भोमट में 1921 में बिलों को अन्याय अत्याचार व शोषण से मुक्त करने हेतु संगठित करने के उद्देश्य से चलाया गया आंदोलन एकी आंदोलन का श्रीगणेश झाडोल व फलासिया गांव में किया आंदोलन की शुरुआत चित्तौड़गढ़ की राशमी तहसील के मातृ कुंडिया स्थान से की गई
उनका जन्म 1886 ईस्वी में कोल्यारी गांव उदयपुर राज्य में हुआ था भील क्षेत्र भोमट में चलाए जाने के कारण इसे भोमट भील आंदोलन भी कहा जाता है विजयनगर राज्य में के निंबाड़ा गांव में 1921 में मोतीलाल तेजावत द्वारा आयोजित सम्मेलन में मेवाड़ भील कोर के सैनिकों ने भी लो पर अंधाधुंध फायरिंग की जिसमें 12 लोग मारे गए 7 मार्च 1922 को पोल स्थान पर मेजर मटन के नेतृत्व में मेवाड़ भील कोर ने इनकी सभा पर अंधाधुंध गोलीबारी की | यह हत्या कांड दूसरा जलियांवाला बाग हत्याकांड था
श्री तेजावत ने आंदोलन का विस्तार सिरोही क्षेत्र के दिलों में भी किया था अखबार देने से मना किया राज्य की पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया गयासन 1936 तक तेजावत को 3 सेंट्रल जेल उदयपुर जेल में ही रखा गया | 23 अप्रैल 1936 को उन्हें कोई आंदोलन आत्मक कार्य नहीं करने की शर्त पर रिहा किया गया फिर भी उन्हें उदयपुर से बाहर जाने की अनुमति नहीं मिली 15 अगस्त 1947 को जब देश आजाद हो गया तभी तेजावत जी को पूरी आजादी मिली 5 दिसंबर 1963 को उनका निधन हो गया |
मीणा आंदोलन - मीणाओं का शासन समाप्त होने के कारण यह चोरी व लूटपाट में लिप्त होने लगे थे 1924 के क्रिमिनल ट्राइब्स एक्ट तथा जयपुर राज्य के जरायम पेशा कानून 1930 के तहत इन्हें रोजाना थाने पर उपस्थिति के लिए पाबंद किया गया मीणा समाज द्वारा अपनी मानवोचित अस्तित्व के लिए मीणा जाति सुधार कमेटी व 1933 में मीणा क्षत्रिय महासभा का गठन किया गया जयपुर क्षेत्र के जैन संत मगन सागर की अध्यक्षता में अप्रैल 1944 में नीमकाथाना में मीणा का एक वृहद अधिवेशन आयोजित किया गया जहां पर बंशीधर शर्मा की अध्यक्षता में राज्य मीणा सुधार समिति का गठन किया गया
इस समिति ने 1945 में जरायम पेशा व अन्य कानून वापस लेने की मांग करते हुए समिति के संयुक्त मंत्री श्री लक्ष्मी नारायण झरवाल के नेतृत्व में आंदोलन चलाया 1946 में सरकार ने बच्चों में स्त्रियों को थाने में उपस्थिति देने से मुक्त कर दिया 28 अक्टूबर 1946 को बागावास में एक विशाल सम्मेलन आयोजित कर चौकीदार मीणाओं ने स्वेच्छा से चौकीदारी के काम से इस्तीफा दिया तथा इसी दिन को मुक्ति दिवस के रूप में मनाया गया स्वतंत्रता के बाद 1952 में जयराम पैसा संबंधी काला कानून रद्द कर दिया गया

राजस्थान में किसान आन्दोंलन
बिजोलिया किसान आंदोलन - राजस्थान का सर्वप्रथम संगठित किसान आंदोलन जो भीलवाड़ा की बिजोलिया ऊपर माल क्षेत्र स्थान के धाकड़ जाति के किसानों ने 1897 ईस्वी में प्रारंभ किया उस समय बिजोलिया के ठिकाने दार राव कृष्ण सिंह थे
कारण - भू राजस्व निर्धारण व संग्रह की पद्धति लाटा कुंता व विभिन्न लाग बागे जबरन बैठ बेगार जागीरदारों के अत्याचार एवं शोषण इस आंदोलन का प्रमुख कारण थे
1996 किसानों ने साधु सीताराम दास फतकरण चारण एवं ब्रह्मदेव के नेतृत्व में भूमि को पड़त रखा है व भूमि कर नहीं दिया 1916 में श्री विजय सिंह पथिक ने इस आंदोलन का नेतृत्व संभाला पथिक जी ने 1917 में मार्च बोर्ड किसान पंचायत नाम से एक संगठन स्थापित कर क्रांति का बिगुल बजाया श्री मुन्ना पटेल को इसका सरपंच अध्यक्ष बनाया गया पथिक जी के आह्वान वह मन्ना जी पटेल के नेतृत्व में किसानों द्वारा किसी भी प्रकार की बेगार चंदा व ऋण न चुकाने का निर्णय पूर्व में ही लिया जा चुका था इस कारण ठिकाने के कर्मचारियों ने गोविंद निवास गांव के नारायण पटेल को गिरफ्तार कर लिया
किसानों ने नारा दिया नारायण पटेल को छोड़े अन्यथा हमें भी जेल दो कुछ समय पश्चात सीतारामदास वह प्रेमचंद को भी बंद कर दिया गया इन बंदियों से किसान विचलित नहीं हुए अप्रैल 1919 में किसानों की मांगों के औचित्य की जांच हेतु न्यायमूर्ति बिंदु लाल भट्टाचार्य जांच आयोग गठित किया गया
एजीजी रॉबर्ट होलैंड स्वंय 4 फरवरी 1922 को बिजोलिया आए उन्हीं के प्रयासों से 11 जून 1922 को किसानों व ठिकाने के मध्य समझौता हुआ अधिकांश कर एवं लाग बागो को समाप्त कर गिरफ्तार लोगों को मुक्त कर दिया गया अत किसानों की अभूतपूर्व विजय हुई 1922 से 1927 तक बिजोलिया बिल्कुल शांत रहा
1927 में पथिक जी इस आंदोलन से दूर हो गए तथा इसका नेतृत्व माणिक्य लाल वर्मा सेठ जमुना लाल बजाज एवं हरीभाऊ उपाध्याय के हाथों में आ गया उपाध्याय जी ने महात्मा गांधी को भी बिजोलिया में हो रहे दमन से अवगत कराया महात्मा गांधी की सलाह पर मालवीय जी ने मेवाड़ के प्रधानमंत्री सर सुखदेव प्रसाद को इस संबंध में एक पत्र लिखा 20 जुलाई 1931 को सेठ जमुनालाल बजाज ने उदयपुर महाराणा व उनके प्रधानमंत्री सर सुखदेव प्रसाद से मुलाकात कर एक समझौता किया
जिसके अनुसार किसानों की मांगें स्वीकार की गई परंतु इसका ईमानदारी से पालन नहीं हुआ इस समझौते के फल स्वरुप सत्याग्रही जेल से रिहा कर दिए गए पर जमीन की वापसी के संबंध में कोई ठोस कार्यवाही नहीं हुई इस पर वर्मा जी किसानों का प्रतिनिधिमंडल लेकर सर सुखदेव से मिलने उदयपुर गए सर सुखदेव ने वही वर्मा जी को गिरफ्तार करवा दिया और कुंभलगढ़ जेल में नजरबंद कर दिया मेवाड़ सरकार ने डेढ़ वर्ष बाद नवंबर 1933 में वर्मा जी को रिहा कर दिया साथ ही उन्हें मेवाड़ से निर्वासित कर दिया
आंदोलन का पटाक्षेप 1941 में मेवाड़ के प्रधानमंत्री सर विजय राघवाचार्य राजस्व मंत्री डॉ मोहन सिंह मेहता तथा माणिक्य लाल वर्मा के प्रयासों से हुआ जब किसानों की मांग मानकर उनकी जमीन वापस दिलवा दी गई श्री माणिक्य लाल वर्मा की यह प्रथम बड़ी सफलता थी यह आंदोलन भारत वर्ष का प्रथम व्यापक और शक्तिशाली किसान आंदोलन था श्रीमती अंजना देवी चौधरी धर्मपत्नी श्री राम नारायण चौधरी ने बिजोलिया किसान सत्याग्रह में प्रमुख रूप से भाग लिया
बेंगू किसान आंदोलन - 1921 में मेनाल भीलवाड़ा में बेगू के किसानों द्वारा रामनारायण चौधरी के नेतृत्व में प्रारंभ है 2 वर्ष की टक्कराहट के बाद ठाकुर अनूप सिंह ने राजस्थान सेवा संघ से सुलह की लेकिन इस समझौते को सरकार द्वारा बोल्शेविक फैसले की संज्ञा दी गई अनूप सिंह को उदयपुर में नजरबंद कर दिया गया एवं ठीक आने पर मूंसरमात बैठा दी गई भ्रष्टाचार और दमन के लिए मैसूर लाला अमृतलाल को बेंगू का मुसरिम नियुक्त किया गया
ट्रेंच कमीशन भी शिकायत की जांच के सिलसिले में डेंगू आया लेकिन इसका बहिष्कार किया गया 13 जुलाई 1923 को किसानों की आय शिक्षकों पर लाठीचार्ज व गोलियां चलाई गई जिससे रूपा जी व क्रपाजी नामक दो किसान शहीद हुए इसके पश्चात डेंगू आंदोलन की बागडोर पथिक जी ने संभाली उनके संगठित आंदोलन के कारण बने दबाव से ठिकाने की मनमानी की जगह बंदोबस्ती व्यवस्था लागू हुई लागे वापस ली गई बेगार प्रथा को समाप्त कर दिया गया आंदोलन समाप्त हुआ
जाट किसान आंदोलन - मेवाड़ में महाराणा फतेह सिंह के शासनकाल में 22 जून 1908 को चित्तौड़गढ़ में राशमी परगना स्थित मातृकुंडिया नामक स्थान पर हजारों जाट किसानों ने नई राजस्व व्यवस्था के विरुद्ध एक जबरदस्त प्रदर्शन किया जुलाई माह के अंत में यह आंदोलन समाप्त हो गया
अलवर किसान आंदोलन - 1921 में सूअरों की समस्या के निराकरण हेतु किसानों द्वारा प्रारंभ आंदोलन अलवर रियासत में जंगली सूअरों को रोधों में पाला जाता था चोरों द्वारा किसानों की खड़ी फसलों को नष्ट कर देना वह उनके मारने पर राज्य सरकार की पाबंदी आंदोलन का प्रमुख कारण था अतः सुअरों को मारने की इजाजत देकर आंदोलन समाप्त किया गया
नींमुचणा किसान आंदोलन व हत्याकांड - अलवर राज्य में पहली बार 1876 ईस्वी में मेजर पी डब्ल्यू द्वारा नियमित भूमि बंदोबस्त 16 वर्षों के लिए किया गया था इसमें लगान का 6% बढ़ाया गया था यह भूमि बंदोबस्त सन 1900 तक चला था दूसरा भूमि बंदोबस्त सन 1900 में अलवर और भरतपुर के सेटलमेंट ऑफिसर एम एफ ओ डायर ने 20 वर्षों के लिए किया था इसमें सामान्य दर 1/3 से 2/5 तक थी पंडित एन एल टिको ने अलवर राज्य में तीसरा संशोधित भूमि बंदोबस्त 1923-24 में लागू किया
इसमें भू राजस्व बढ़ा दिया गया और राजपूत किसानों को कोई रियायत नहीं दी गई तीसरे बंदोबस्त में जातिगत आधारों को समाप्त कर दिया गया था इससे राजपूत व ब्राह्मण किसानों अथवा भू स्वामियों में असंतोष बढ़ना स्वाभाविक था यही नहीं बिस्वेदारो के अधिकांश अधिकारों को छीन लिया गया था मंदिरों की माफी भूमि को खालसा कर दिया गया था
अतः बानसूर और थानागाजी के राजपूत किसान राजावत और शेखावत दोनों ने ही यह फैसला किया कि वह केवल पुरानी दर यानी उपज का 1/4 भाग से ही भू राजस्व अदा करेंगे अक्टूबर 1924 में माधव सिंह गोविंद सिंह के नेतृत्व में आंदोलन छेड़ा गया इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए उन्होंने कई स्थानों पर सभाएं की और सर्वसम्मति से राज्य के अधिकारियों को नई दरों से राजस्व देने के प्रस्ताव पास किए
इस आंदोलन का मुख्य केंद्र नींमु चणा गांव था मई 1925 के आरंभ में भारी संख्या में हथियारों से लैस राजपूत ठाकुर व किसान गांव में एकत्रित हुए वहीं ठहर गए उन्होंने फोज का सामना करने का निर्णय लिया स्थिति की गंभीरता को देखते हुए अलवर के महाराजा जय सिंह ने इस मामले की जांच हेतु जनरल रामभद्र ओझा की अध्यक्षता में एक आयोग नियुक्त किया यह आयोग 7 मई 1925 को नींमु चणा पहुंचा इसे यह दायित्व सौंपा गया था कि इसके सदस्य समस्या समाधान हेतु सुझाव दें लेकिन यह आयोग सार्थक सिद्ध नहीं हुआ अलवर सरकार ने नींबू चणा के संघर्षरत राजपूत किसानों को बलपूर्वक कुचलने का निश्चय किया
13 मई 1925 को अलवर सैन्य दल नींमु चणा तहसील बानसूर पहुंचा तथा संपूर्ण गांव पर घेरा डाल दिया गांव को घेरने के पश्चात वहां के ठाकुर को आंदोलन समाप्त करने के लिए मजबूर किया गया कोई वंचित प्रणाम न मिलता देख सैन्य दल ने कमांडर छाजू सिंह के आदेश पर (14 मई 1925 rajasthan through the age में 14 मई 1925 राजस्थान में स्वतंत्रता संग्राम बीएल पनगढ़िया में यह तारीख 24 मई तथा कक्षा 12 माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की पुस्तक राजस्थान का इतिहास एवं संस्कृति में यह तारीख 3 मई 1925 दी गई है ) को मशीन गणों से गांव पर गोलियां दागना आरंभ कर दिया पूरे गांव को जलाकर राख कर दिया इस सैनिक अभियान में कई लोग मारे गए तथा कई घायल हो गए यह एक नृशंस हत्याकांड था
महात्मा गांधी ने अपने पत्र यंग इंडिया में इसे डायरिज्म डबल डिस्टेंलड की संज्ञा देते हुए जलियांवाला बाग हत्याकांड से भी अधिक वीभत्स बताया अलवर के महराजा नींमु चणा की घटना की जांच करने के लिए जनरल साधु सिंह की अध्यक्षता में एक आयोग की नियुक्ति की ओर लाला राम चरण लाल सिविल जज और नाहरपुर के ठाकुर सुल्तान सिंह को इसका सदस्य बनाया गया नींबू चणा कांड की जांच के लिए राष्ट्रीय कार्यकर्ता बराबर मांग करते रहे एक जांच कमेटी मणिलाल कोठारी की अध्यक्षता में गठित की गई इसके सचिव रामायण राम नारायण चौधरी बनाए गए
नींबू चणा कांड में 39 आदमियों को गिरफ्तार किया गया था 3 जून 1925 को अलवर जेल के सुपरिटेडेंट पंडित हरबक्श को नींमु चणा से गिरफ्तार लोगों के मुकदमे की सुनवाई के लिए स्पेशल जज नियुक्त किया गया उसने मुकदमे की सुनवाई 1 माह में पूर्ण की 39 गिरफ्तार लोगों में से 9 को सबूत के अभाव में बरी कर दिया गया और शेष 30 लोगों को अलग-अलग अवधि के सजाएं 8 जुलाई 1925 को सुनाई गई
अलवर सरकार ने तत्काल कुछ राहत की व्यवस्था दी कि जिन लोगों की इस दुकांटनतिका में झोपड़ियां जल गई थी उन्हें आर्थिक सहायता दी गई 1 अगस्त 1925 को महाराजा के आदेश पर 30 में से 13 कैदियों को फिर 25 सितंबर 1925 को 13 कैदियों को तथा चार शेष जो आंदोलन के प्रमुख नेता थे माधव सिंह गोविंद सिंह गंगा सिंह और अमर सिंह को 3 जनवरी 1926 को छोड़ दिया गया महाराजा जयसिंह समय नींमु चणा गए और 18 नवंबर 1925 को लिखित आदेश दिया कि भू राजस्व पुराने सेटलमेंट के अनुसार ही लिया जाएगा न कि नए के अनुसार इस मांग को माने जाने पर राजपूत किसानों का यह आंदोलन स्वत ही समाप्त हो गया
अलवर का मेव आंदोलन - ब्रिटिश काल में मेल मेवात क्षेत्र में रहते थे जिसमें कुछ हिस्सा जयपुर अलवर भरतपुर और पूर्व पंजाब का गुड़गांव जिला सम्मिलित था अलवर राज्य में तिजारा किशनगढ़ रामगढ़ और लक्ष्मणगढ़ की निजामत में बहुसंख्यक थे सर्वप्रथम 1921 में मेव मुख्य प्रकाश में आए जब उन्होंने असहयोग व खिलाफत आंदोलन के प्रभाव में विद्रोह किया था 1921 का मेव उभार अधिक विस्तृत नहीं था किंतु इसके प्रभाव में एक अलग-थलग पड़ा समुदाय देश की मुख्यधारा से जुड़ गया था
अलवर के मेव आंदोलन की शुरुआत 1932 में हुई मेव आंदोलन के प्रमुख नेता अलवर के डॉक्टर मोहम्मद अली गुड़गांव के यासीन खान अंबाला शहर के गुलाम भीक नारंग थे जून 1932 में राज्य सरकार ने रजिस्ट्रेशन ऑफ सोसाइटी एक्ट पारित किया जिसके अनुसार इस अधिनियम के पूर्व या बाद में स्थापित सभी संगठन को इसके अंतर्गत पंजीकृत कराना आवश्यक कर दिया था
मेवों मैं इस अधिसूचना वह अधिनियम का विरोध किया 22 जुलाई 1932 को पुलिस ने लाठीचार्ज किया मुसलमानों ने उसी दिन हड़ताल करके अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की तथा केंद्रीय जमाईत ए तबलीग उल इस्लाम अंबाला के जनरल सेक्रेटरी सैयद गुलाम भिक नारंग ऑल इंडिया मुस्लिम लीग और दूसरे मुस्लिम संगठनों से अपनी शिकायतों को दूर कराने और राहत पाने के लिए सहायता मांगी इस घटना के विरोध में अलवर राज्य के लगभग 10,000 में भरतपुर राज्य गुड़गांव हिसार रेवाड़ी नूह व फिरोजपुर झिरका में पलायन कर गए इनका प्लान 25 जुलाई 1932 से प्रारंभ होकर 1 सप्ताह तक जारी रहा
6 अक्टूबर 1932 को ऑल इंडिया मुस्लिम कांफ्रेंस का एक प्रतिनिधिमंडल अपने अध्यक्ष डॉ मोहम्मद इकबाल के नेतृत्व में भारत के वायसराय से शिमला में मिला और उन्हें अलवर के मुसलमानों की शिकायतों का एक ज्ञापन पेश किया और मांग की कि भु राजसव चराई कर जंगलात के टैक्स आबकारी और सीमा शुल्क घटाकर ब्रिटिश भारत के गुड़गांव जिले के स्तर तक लाए जाएं मेल किसान अलवर के भू राजस्व प्रशासन एवं पद्धति की तुलना गुड़गांव जिले से कर रहे थे तथा उन्होंने इसके सात समानता स्थापित करने की मांग की अकाल राहत भू राजस्व में मुक्ति और तकावी ऋण का संचालन उसी प्रकार से किया जाए जैसे गुड़गांव जिले में होता है
अलवर के मेव आंदोलन में मार्गदर्शको में अंबाला क्षेत्र के गुलाम भिक़ नारंग गुड़गांव के यासीन खान व अलवर के डॉक्टर मोहम्मद अली ने कौंसिल ऑफ एक्शन बनाई इस काउंसिल ने नवंबर 1932 में राज्य में मेवा आंदोलन शुरू किया और प्रसार किया कि तिजारा किशनगढ़ और रामगढ़ की निजामत में जहां में बसे हुए हैं सरकार को कोई लगाम नहीं दिया जाए इस प्रकार अलवर राज्य में इन नेताओं ने इस सांप्रदायिक असंतोष को कृषक आंदोलन में बदल दिया इन निजामत तो के लगभग 200 गांवों ने भू राजस्व देने से इनकार कर दिया मेवों ने बल प्रयोग का रास्ता बनाया 12 दिसंबर 1932 को अलवर महाराजा ने पूरे राज्य में किसानों की शिकायतों का पता लगाने के लिए एक जांच समिति नियुक्त कर दी जिसके अध्यक्ष राजा दुर्जन सिंह थे और सदस्य राजा गजनाफर अली और गणेशी लाल थे
इस समिति का गुड़गांव के मेव नेता यासीन खान की सलाह पर बहिष्कार किया गया मेव विद्रोह फैलता गया और बद से बदतर हो गया मार्च 1933 में एफ वी वाईली लोचन के स्थान पर अलवर के स्थाई प्रधानमंत्री बने
ब्रिटिश सरकार ने 22 मई 1933 को अलवर महाराजा को अनिश्चित काल के लिए अलवर राज्य से बाहर निष्कासित कर दिया और राज्य प्रशासन का भार अंग्रेज अफसरों ने पूर्ण रूप से अपने हाथों में ले लिया 25 मई 1933 को इबट्सन ने ताई बाजरी कर एक जून 1933 से समाप्त करने की घोषणा की अलवर थानागाजी के बीच की सड़क पर लगने वाला कर भी समाप्त कर दिया गया
भू राजस्व का पुण्य आकलन करें भू राजस्व पूरी तरह हैं प्रत्येक खेत की हालत और फसलों की वर्तमान कीमत के अनुसार होने का प्रबंध किया गया इसका परिणाम यह हुआ कि 5 निजाम तो अलवर राजगढ़ किशनगढ़ रामगढ़ और मंडावर में औसत भू राजस्व में 20 से 25% की कमी हो गई और कुछ मामलों में तो यह 50% तक कम हो गया भू राजस्व में छूट बंजर वरूद जमीनों की वापसी सूअरों को मारने की अनुमति और चराई कर की दरों में कमी की घोषणा भी की गई इस प्रकार मेवों की सभी शिकायतें दूर कर दी गई और अलवर राज्य में फैला में आंदोलन स्वत शांत हो गया
भरतपुर में किसान आंदोलन - भरतपुर राज्य में तुलनात्मक रूप से जागीरो की संख्या कम थी सबसे बड़ी जागीर बल्लभगढ़ थी भरतपुर राज्य में 19 ईसवी में पंजाब प्रणाली की तर्ज पर 20 वर्षों के लिए पहला भूमि बंदोबस्त हुआ था बाद में नवंबर 1931 में दूसरा संशोधित सेटलमेंट लागू किया गया इसमें किसान की शुद्ध उपज का 2 बटा 3 भाग सरकार का हिस्सा रखा गया था आबियाना सिंचाई कर मलबा गवाही खर्च और पटवार फंड अलग से लिए जाते थे
आंदोलन की शुरुआत - 1930-31 की विश्व आर्थिक मंदी बाहों में गिरावट व नए भूमि बंदोबस्त में राजस्व की ऊंची दरों ने किसानों में असंतोष उत्पन्न कर दिया लंबरदार व पटेलों को भू राजस्व की वसूली में भारी कठिनाई महसूस होने लगी थी इसलिए वे ही बढ़े हुए राजस्व के विरुद्ध संघर्ष के लिए आगे आए 23 नवंबर 1931 को भरतपुर में भौजी लंबरदार के नेतृत्व में विभिन्न तहसील के करीब 500 किसान 123 हुए भरतपुर सटेट कोंसिल ने राजस्व में कुछ रियायत दी किंतु इससे किसान संतुष्ट नहीं हुए
1932 ईस्वी में भी किसानों का यह आंदोलन चलता रहा अंत में इस बढ़ते हुए आंदोलन ने काउंसिल ऑफ स्टेट्स भरतपुर को 5 साल के लिए नए भूमि बंदोबस्त को स्थगित करने के लिए विवश कर दिया तब कहीं जाकर यह आंदोलन शांत हुआ
भरतपुर में बेगार के खिलाफ आंदोलन - भरतपुर राज्य में व्यापक रूप से फैली बेगार प्रथा के खिलाफ जनवरी 1947 में लाल झंडा किसान सभा मुस्लिम कांफ्रेस और भरतपुर प्रजा परिषद ने एक संयुक्त आंदोलन शुरू किया 5 जनवरी 1947 को राजस्थान में प्रजामंडल आंदोलन डॉ विनीता परिहार के अनुसार 4 जनवरी 1947 लॉर्ड वेवेल भारत के वायसराय तथा बीकानेर महाराजा साधू सिंह केवलादेव झील में बतखो के शिकार के लिए आए
उन्होंने कुछ जाटवो और गोलियों को बेकार करने के लिए बुलाया और बतखों को उठाने के लिए सर्दियों में गले तक गहरे पानी में दिन भर खड़े रहने के लिए मजबूर किया इसे माननीय व्यवहार का विरोध करते हुए लाल झंडा किसान सभा मुस्लिम कॉन्फ्रेंस और भरतपुर प्रजा परिषद ने सत्याग्रह शुरू कर दिया
उन्होंने बीकानेर नरेश वापस जाओ और लॉर्ड वेवेल वापस जाओ के नारे लगाए इस बेकार के विरोध में भरतपुर शहर में एक संयुक्त सार्वजनिक सभा का आयोजन किया गया तब भरतपुर सरकार ने इस सभा में गड़बड़ी करने के लिए जाट सभा के कुछ सदस्यों को बुलाया इसके विरोध में भरतपुर किले के दरवाजे पर धरना दिया गया
और सरकार ने 15 जनवरी 1947 को सेना बुला ली अनेकों सत्याग्रही घोड़ों के खुरो से कुचले गए और अनेक लाठीचार्ज में गंभीर रूप से घायल हो गए 28 जनवरी 1947 को राजपूताना के सभी राज्यों में भरतपुर दिवस मनाया गया बेगार विरोधी दिवस सरकार की दमन नीति और अनेकों सत्य ग्रहों की गिरफ्तारी के बावजूद लाल झंडा किसान सभा मुस्लिम कांग्रेस और प्रजा परिषद आंदोलन चलाती रही फरवरी 1947 में बेगार विरोधी आंदोलन ने जोर पकड़ लिया
5 फरवरी 1947 को बेगार विरोधी दिवस मनाया गया उसी दिन भुसावर के रमेश स्वामी ने अपने दल के साथ वेर जाकर बेगार विरोधी दिवस मनाने का कार्यक्रम बनाया किंतु बस के मालिक ने उन्हें बस में नहीं चढ़ने दिया इस पर उन्होंने विरोध में सत्याग्रह किया और बस के सामने लेट गए बस मालिक ने बस लाकर उन्हें कुचल दिया रमेश स्वामी वही मारे गए 20 जुलाई 1947 को भरतपुर प्रजापत के अध्यक्ष आदित्येन्द्र ने आंदोलन वापस ले लिया
बूंदी किसान आंदोलन - बरड क्षेत्र बूंदी के दक्षिण पश्चिम में मेवाड़ राज्य की सीमा से मिला हुआ क्षेत्र था
1922 25 के मध्य बूंदी के बर्ड क्षेत्र में किसान आंदोलन हुआ किसानों की समस्याएं मुख्यतः युद्ध कर बेगार लागबाग एवं राज्य कर्मचारियों द्वारा उनके उत्पीड़न से संबंधित थी इस आंदोलन में किसानों ने अपनी सभाओं में लाठियों से लैस महिलाओं के जत्थे को आगे रखा था
बिजोलिया किसान आंदोलन के प्रमुख नेता विजय सिंह पथिक ने खुलकर इस आंदोलन का समर्थन किया था बिजोलिया पद्धति पर किसानों ने सारे क्षेत्र में अपने समय की पंचायती स्थापित कर ली थी पंचायत की सप्ताहिक बैठकर करने का प्रावधान रखा गया मुख्यता पंचायत केन्द्र थे डाबी बरड़ बरुघन और गरडदा |
किसानों की बढ़ती हुई गतिविधियों से भयभीत होकर राज्य ने किसान दमन को शुरू कर दिया 10 जून 1922 को डाबी में 18 किसानों को गिरफ्तार कर बूंदी जेल भेज दिया 13 जून 1922 को राजपुरा नारोली एवं लंबाखोह में 17 लोग गिरफ्तार किए गए किंतु रास्ते में 300 महिलाओं के जत्थे ने इन किसानों को मुक्त करवा लिया इसमें राज्य सैन्य दल ने भीड़ को तितर-बितर करने के लिए लाठी बालों का खुलकर प्रयोग किया इस घटना में काफी महिलाएं घायल हुई राजस्थान सेवा संघ अजमेर की ओर से राम नारायन चौधरी और सत्य भगत को घटनास्थल पर जांच के लिए भेजा गया
राजस्थान सेवा संघ ने इस घटना का खुलकर विरोध करते हुए एक पंपलेट प्रकाशित किया जिसका शीर्षक था बूंदी राज्य में स्त्रियों पर अत्याचार इस पंपलेट में महिला आंदोलनकारी कार्यों पर पुलिस ने अत्याचारों को उजागर करते हुए इसकी भर्त्सना की गई थी इस आंदोलन की तरह प्रणीति 2 अप्रैल 1923 को डाबी में एक अप्रिय घटना के रूप में हुई 2 अप्रैल 1923 को डाबी में किसानों की सभा की जा रही थी सभा स्थल पर राज्य पुलिस पहुंची और इस सभा को रोकने का प्रयास किया
पुलिस के आदेशों की अवहेलना करने के अपराध में बूंदी के पुलिस अधीक्षक इकराम हुसैन ने भीड़ पर गोली चलाने के आदेश दे दिए दो किसान नानक भील और देव लाल गुर्जर मारे गए और स्त्रियों सहित कई अन्य घायल हुए राजस्थान सेवा संघ अजमेर ने पुलिस द्वारा की गई ज्यादतीयों की जांच की मांग की इस पर बूंदी के शासक ने महाराज पृथ्वीराज पंडित राम प्रताप व लाला भेरूलाल इन 3 सदस्यों का एक विशेष जांच आयोग नियुक्त किया जांच आयोग ने पुलिस सुप्री डेंट हुसैन द्वारा किसानों पर गोली चलाने को पूरी तरह उचित ठहराया
यह घटना बूंदी के किसान आंदोलन की सबसे भीषण घटना मानी जाती है राजस्थान के स्वतंत्रता सेनानी माणिक्य लाल वर्मा ने उसी समय नानक भील की याद में एक गीत अर्जी शीर्षक से लिखा नानक बिल राजस्थान का एक प्रमुख शहीद कहलाया 1925 में बरड़ किसान आंदोलन ने सभाओ जुलूस और धरना प्रदर्शन इत्यादि का रास्ता छोड़कर आवेदनों और अपीलों का रास्ता बना लिया था यह आंदोलन पंडित नयनू राम शर्मा के नेतृत्व में चला बूंदी जेल से रिहा होने के बाद पंडित नयनु राम शर्मा को राजस्थान सेवा संघ की शाखा का अध्यक्ष नियुक्त कर दिया गया
और इसका मुख्यालय कोटा रखा गया नयनू राम शर्मा द्वारा हाड़ौती सेवा संघ के अध्यक्ष की हेसियत से बूंदी के जनता की ओर से अनेक याचिका निवेदन पत्र प्रस्तुत किए गए लेकिन कोई विशेष परिणाम सामने नहीं आए सन 1927 के बाद राजस्थान सेवा संघ अंतर्विरोध के कारण बंद हो गया इसके साथ ही बूंदी का किसान आंदोलन स्वत ही समाप्त हो गया बूंदी के आंदोलन का एक उल्लेखनीय लक्षण यह था कि यह पूरी तरह राज्य के खिलाफ था जबकि मेवाड़ में आंदोलन मुख्यतः जागीरदारों के खिलाफ था
बूंदी में आंदोलन भू राजस्व के खिलाफ नए होकर दूसरे करो लागो बेगारों और राज्य अधिकारियों में व्याप्त भ्रष्टाचार के विरुद्ध था तुलनात्मक दृष्टि से बूंदी के किसानों के कष्ट मेवाड़ के किसानों की तुलना में कम थे बूंदी के आंदोलन की एक उल्लेखनीय बात स्त्रियों द्वारा बड़ी संख्या में इसमें शामिल होना था दमन का बोझ भी स्त्रियों को ही अधिक सहना पड़ा
मारवाड़ में किसान आंदोलन - राजपूताना में मारवाड़ सबसे बड़ा राज्य था या अधिकांश भूमि जागीरदारों के अधिकार में थी जागीरो में न तो भूमि बंदोबस्त हुआ था और नया लगान की राशि निर्धारित थी मारवाड़ की जागीर ओं में उत्तराधिकारी की दो तरह की पद्धतियां प्रचलित थी एक पाटवि दूसरी भोमी चारा
मारवाड़ हितकारिणी सभा का आंदोलन - 1929 में मारवाड़ हितकारिणी सभा ने जागीर क्षेत्र के किसानों को जागीरदारों के शोषण से मुक्ति दिलाने के लिए आंदोलन करने का निर्णय किया तदनुसार श्री जय नारायण व्यास की अध्यक्षता में किसानों का बेगार व लाग़बाग न देने का आह्वान किया गया फलस्वरुप किसानों ने जागीरदारों को लगाम देना बंद कर दिया जोधपुर सरकार ने स्थिति का आकलन करते हुऐ 1 जून 1929 को सारे मारवाड़ में बेगार को कानून अवैध घोषित कर दिया
डाबड़ा कांड - लोक परिषद और किसान सभा द्वारा 13 मार्च 1947 को डाबड़ा डीडवाना में सभा आयोजित की गई थी इस सभा में 5000 किसान मौजूद थे डाबड़ा ठाकुर ने इस सभा पर हमला करवा दिया कई व्यक्ति घायल हो गए मौके पर पुलिस निष्क्रिय बनी रहे डाबड़ा कांड की पूरे देश में तीव्र भृत्सना हुई 9 नवंबर 1948 को लगान के अतिरिक्त जितनी भी लागे जागिरी गांव से वसूल होती थी उनको एक कानून द मारवाड़ अबोलिशन आफ केसेस एक्ट 1948 बनाकर समाप्त कर दिया गया
15 दिसंबर 1948 को द जागीरदार जुडिकल पावर अबोलिशन एक्ट 1948 को पास कर मारवाड़ में जीन जागीरदारों के पास न्यायिक अधिकार थे समाप्त कर दिए गए ताकि जागीरदार किसानों पर अपनी शक्ति का दुरुपयोग कर अत्याचार ना कर सकें
बीकानेर में किसान आंदोलन
दूधवाखारा किसान आंदोलन
जिस प्रकार से मेवाड़ के बिजोलिया किसान आंदोलन ने सारे देश का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया था उसी भांति बीकानेर के दूधवाखारा ठिकाने के किसान आंदोलन ने भारत के राष्ट्रीय नेताओं का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने में सफलता प्राप्त की इस आंदोलन की पृष्ठभूमि में भी ठिकाने के गांव की भूमि का बंदोबस्त होना ही था
दूधवाखारा किसान आंदोलन के संबंध में किसान नेता चौधरी हनुमान सिंह वह बीकानेर राज्य प्रजा परिषद के अध्यक्ष पंडित मगाराम वेद को गिरफ्तार कर कठोर यातनाएं दी गई दूधवाखारा में किसानों की स्थिति की जांच करने वाले दल के एक सदस्य राम माधव सिंह को भी राज्य से निर्वासित कर दिया गया दूधवाखारा कि किसानों पर जुल्म बंद नहीं हुई
राजगढ़ आंदोलन - 1945 के अंत तक चूरू की राजगढ़ निजामत के किसानों में जागृति पैदा हुई और उन्होंने सत्याग्रह किया उनके नेता स्वामी परमानंद वह चौधरी हनुमान सिंह की गिरफ्तारी होने पर तारानगर के किसानों ने विरोध प्रदर्शन किया राजगढ़ में मई 1946 को एक बड़ा जुलुस निकाला गया जिस पर पुलिस ने बर्बरता पूर्ण लाठीचार्ज किया 21 जून 1946 को मध्यप्रदेश राज्य में शीघ्र ही उत्तरदाई शासन स्थापित करने की घोषणा की लेकिन 1 जुलाई 1946 को रायसेन नगर में एक जुलूस पर गोली कांड में बीरबल नामक व्यक्ति की शहादत ने स्थिति को पुनः बिगाड़ दिया 6 जुलाई 1946 को किसान दिवस मनाया गया
1947 में बीकानेर राज्य प्रजा परिषद के अध्यक्ष पद पर किसान नेता स्वामी करमानंद के निर्वाचन के पश्चात उन्होंने जागिरी जुल्म की अपेक्षा जागीरदारी प्रथा समाप्त होने का नारा लगाना प्रारंभ कर दिया जागीरदारों के खिलाफ अधिक सक्रिय हो गए
कांगड़ किसान आंदोलन - कांगड़ बीकानेर राज्य की रतनगढ़ तहसील का एक छोटा सा गांव है1937 से पूर्व यहां गांव खासा था जिसे 1937 में जागीर क्षेत्र में दे दिया गया इसी के साथ वहां जागीरदारों ने अपने जुलम डालने शुरू कर दिए 1945 में कांगड़ गांव में अच्छी फसल नहीं हुई किसानों ने अनुचित लाभ भाग्य नया लेने की प्रार्थना की लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई वह ठाकुर गोप सिंह ने अपने अत्याचार बढ़ा दिए इसकी जानकारी होने पर 1 नवंबर 1946 को बीकानेर प्रजा परिषद के साथ कार्यकर्ता स्वामी सच्चिदानंद चौधरी हंसराज पंडित गंगाधर दीपचंद चौधरी राम प्रोफेसर केदारनाथ शर्मा और चौधरी रुपाराम कांगड़ गए वहां उनके साथ भी ठाकुर ने दुर्व्यवहार किया इसकी देशभर में व्यापक प्रतिक्रिया हुई
लेकिन राज्य में कांगड के जागीरदार ठाकुर गोप सिंह का अत्यधिक प्रभाव होने के कारण राज्य के थानेदार के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की लेकिन इससे किसानों में एक नई चेतना आ गई
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