Rajasthan Me Paryatan Sthal
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Rajasthan Me Paryatan Sthal
- अढ़ाई दिन का झोंपड़ा
- आनासागर झील
- किशनगढ रियासत
- पुष्कर
- पशु मेला
- अलवर का किला
- विनय विलास महल
- आमेर दुर्ग
- Rajasthan Me Paryatan Sthal
- फतेह सागर झील
- पिछौला झील - Rajasthan Me Paryatan Sthal
- नाहरगढ़ किला
- राजसमन्द झील
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अढ़ाई दिन का झोंपड़ा
राजस्थान के अजमेर नगर में स्थित यह एक मस्जिद है। माना जाता है इसका निर्माण सिर्फ अढाई दिन में किया गया और इस कारण इसका नाम अढाई दिन का झोपड़ा पढ़ गया।
इसका निर्माण पहले से वर्तमान संस्कृत विद्यालय को परिवर्तित करके मोहम्मद ग़ोरी के आदेश पर मोहम्मद गौरी के गवर्नर कुतुब-उद-दीन ऐबक ने वर्ष 1192 में करवाया था। मोहम्मद गौरी ने तराईन के युद्ध में पृथ्वीराज चौहान को हरा दिया उसके बाद पृथ्वीराज की राजधानी तारागढ़ अजमेर पर हमला किया। - Rajasthan Me Paryatan Sthal
यहां स्थित संस्कृत विद्यालय में रद्दो बदल करके मस्जिद में परिवर्तित कर दिया। ।इसका निर्माण संस्कृत महाविद्यालय के स्थान पर हुआ।इसका प्रमाण अढाई दिन के झोपड़े के मुख्य द्वार के बायीं ओर लगा संगमरमर का एक शिलालेख है जिस पर संस्कृत में इस विद्यालय का उल्लेख है।अन्य मान्यता अनुसार यहाँ चलने वाले ढाई दिन के उर्स के कारण इसका नाम पड़ा।
यहाँ भारतीय शैली में अलंकृत स्तंभों का प्रयोग किया गया है, जिनके ऊपर छत का निर्माण किया गया है। मस्जिद के प्रत्येक कोने में चक्राकार एवं बासुरी के आकार की मीनारे निर्मित है । 90 के दशक में इस मस्जिद के आंगन में कई देवी - देवताओं की प्राचीन मूर्तियां यहां-वहां बिखरी हुई पड़ी थी जिसे बाद में एक सुरक्षित स्थान रखवा दिया गया। ये भारत की सबसे प्राचीन इस्लामी मस्जिदों में शुमार है। इस लेख के इतिहासकार जावेद शाह खजराना के अनुसार केरल स्थित चेरामन जुमा मस्जिद के बाद अढाई दिन का झोपड़ा सबसे पुरानी मस्जिद है
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आनासागर झील

भारत देश के राजस्थान राज्य के अजमेर जिले में है।
आनासागर झील व अजमेर नगर का निर्माण पृथ्वीराज चौहान के पितामह अरुणोराज या आणाजी चौहान ने बारहवीं शताब्दी के मध्य (1135-1150 ईस्वी) करवाया था।
आणाजी द्वारा निर्मित करवाये जाने के कारण ही इस झील का नामकरण आणा सागर या आना सागर प्रचलित माना जाता है।
झील के लिए जलसंभरण का कार्य स्थानीय आबादी द्वारा करवाया गया था। १६३७ ईस्वी में शाहजहां ने झील के किनारे लगभग १२४० फीट लम्बा कटहरा लगवाया और पाल पर संगमरमर की पाँच बारादरियों का निर्माण करवाया।
झील के प्रांगण में स्थित दौलत बाग का निर्माण जहांगीर द्वारा करवाया गया जिसे सुभाष उद्यान के नाम से भी जाना जाता है।
आना सागर का फैलाव लगभग १३ किलोमीटर की परिधि में विस्तृत है।
यह बहुत खूबसूरत है। - Rajasthan Me Paryatan Sthal
ऐतिहासिक तथ्यो के आधार पर ग्याशुद्दीन खिलज़ी ने 1465 में यहाँ दरगाह और गुम्बद का निर्माण करवाया था। बाद के समय में बादशाह अकबर के शासन काल में भी दरगाह का बहुत विकास हुआ। दरगाह अजमेर शरीफ़ का मुख्य द्वार निज़ाम गेट कहलाता है क्योंकि इसका निर्माण 1911 में हैदराबाद स्टेट के उस समय के निज़ाम, मीर उस्मान अली ख़ाँ ने करवाया था। उसके बाद मुग़ल सम्राट शाह जहाँ द्वारा खड़ा किया गया शाहजहानी दरवाज़ा आता है।
दरगाह के अंदर बेहतरीन नक्काशी किया हुआ एक चांदी का कटघरा है। इस कटघरे के अंदर ख्वाजा साहब की मजार है। यह कटघरा जयपुर के महाराजा राजा जयसिंह ने बनवाया था। दरगाह में एक खूबसूरत महफिल खाना भी है, जहां कव्वाल ख्वाजा की शान में कव्वाली गाते हैं।
फाई सागर - यह भी एक प्राकृतिक झील है और अजमेर में स्थित है। इसका पानी आना सागर में भेज दिया जाता है क्योंकि इसमें वर्ष भर पानी रहता है
किशनगढ रियासत
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राजस्थान के अजमेर जिले में स्थित किशनगढ रियासत पर अठारहवीं सदी के उत्तर मध्य काल में राठौर राजा सावंत सिंह का राज्य था। राजा राधा कृष्ण का उपासक था। वह कवियों तथा चित्रकारांे को आश्रय देता था। साथ ही वह खुद एक अच्छा कवि एवं चित्रकार था। उसने अपनी एक प्रिय दासी की को राजसी परिधान व आभूषण पहनाकर एक लाइव पेंटिंग बनाई।
इसी पेंटिंग को बणी ठणी के नाम से जाना जाता है। बणी ठणी का अर्थ होता है सजी संवरी। इस पेंटिंग को उसने अपने राजकीय चित्रकार निहाल चंद को दिखाया। निहाल चंद ने इस पेंटिंग की प्रति तैयार की। बाद में इस शैली में हजारों चित्र बनाए गए। जो इसी शैली में होने के कारण इस शैली का नाम बणी ठणी चित्रकला शैली पड गया। बणी ठणी इस कदर लोकप्रिय हुई कि उस दासी को भी बणी ठणी ही कहा जाने लगा।
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आज बणी ठणी चित्रकला शैली मिनियेचर आर्ट की दुर्लभ विधाओं में से एक हैं। इस शैली का प्रचार विदेशों तक है। बनी ठणी की नायिका ने राजा सावंत सिंह के साथ अंतिम समय ब्रज में आकर बिताया। बणी ठणी की समाधि पर बने गुबंद में बणी ठणी शैली के चित्र बने हुए है। सरंक्षण के अभाव में यह बहुमूल्य धरोहर बर्बादी के कगार पर है।
इस गुंबद में होली, दिवाली, गौचारण व अन्य उत्सवों के चित्रों के साथ साथ राजा सावंत सिंह व बणी ठणी के चित्र बने हुए है। इन चित्रों में श्रीराधा के रूप में चित्रित बणी ठणी के हाथ में कमल देकर लक्ष्मी की तरह बताया गया है वहीं नारी के कमला और पद्मिनी रूप को दर्शाया है। बणी ठणी पर मुगल तथा कश्मारी शैलियों का पूरा प्रभाव हैं पडा और एकचश्म टिपाई, के साथ गदकारी खुलाई की खुली छाया बणी ठणी पर छाई रही।
इसमें जहां मुगलकालीन बेगमों सा सुकुबपन और नाजुक पन हैं वहीं झीना ओढना कश्मीरी कहानी कहता है। किशनगढ के राजमहलों की पृष्ठभूमि में उद्यानों और जलाशयों में नौका विहार के अनेक चित्र हैं। महाराज सांवत सिंह की मूल कृति से लेकर राज चित्रकार निहाल चंद की अंतिम बणी ठणी तैयार होने का यह सिलसिला संवत 1755 से 1757 तक चला। इस बीच अन्य चित्र भी बनते रहे। मारवाड शैली की उन्नत कलम का यह स्वर्णकाल कहा जा सकता है।
बनी ठणी को नागर रमणी भी कहा गया है। वहीं राजा सांवत सिंह ने नागरी दास के नाम से रचनाएं की है
पुष्कर - Rajasthan Me Paryatan Sthal
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राजस्थान के अजमेर जिले से करीब 15,16 किमी दूरी पर पुष्कर बसा हुआ है ।
कार्तिक माह की पूर्णिमा को यहा मेला लगता है। यहा ब्रह्मा जी का मन्दिर है जो विश्व का एक मात्र मन्दिर है खूबसूरत पहाडियों के बीच यह अतधिक सुन्दर स्थान है। यहा का मेला देखने देश विदेशों से सैलानी आते हैं। यहा आस पास क गावो से लोग अपने पशुओ को लेकर आते हैं। इसे पशु मेला भी कहा जाता है यहा पशुओ की विभिन्न प्रतिप्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाताहै। कई झूले कई प्रकार के व्यंजन आदि यहा मिल जाते हैं।कार्तिक मास की एकादशी से पूर्णिमा तक 5 दिन विभिन्न प्रकार की प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती
पुष्कर मेले की क्या विशेषताएं - Rajasthan Me Paryatan Sthal
पुष्कर मेला कार्तिक शुक्ल एकादशी से पूर्णिमा तक लगता है। दूसरा मेला वैशाख शुक्ला एकादशी से पूर्णिमा तक रहता है। मेलों के रंग राजस्थान में देखते ही बनते हैं। ये मेले मरुस्थल के गांवों के कठोर जीवन में एक नवीन उत्साह भर देते हैं। लोग रंग-बिरंगे परिधानों में सज-धजकर जगह-जगह पर नृत्य-गान आदि समारोहों में भाग लेते हैं। यहां पर काफी मात्रा में भीड़ देखने को मिलती है। लोग इस मेले को श्रद्धा, आस्था और विश्वास का प्रतीक मानते हैं।
पुष्कर मेला थार मरुस्थल का एक लोकप्रिय व रंगों से भरा मेला है। यह कार्तिक शुक्ल एकादशी को प्रारम्भ हो कार्तिक पूर्णिमा तक पांच दिन तक आयोजित किया जाता है। मेले का समय पूर्ण चन्द्रमा पक्ष, अक्टूबर-नवम्बर का होता है। पुष्कर झील भारतवर्ष में पवित्रतम स्थानों में से एक है। प्राचीनकाल से लोग यहां पर प्रतिवर्ष कार्तिक मास में एकत्रित हो भगवान ब्रह्मा की पूजा उपासना करते हैं।
पशु मेला - Rajasthan Me Paryatan Sthal
कार्तिक के महीने में यहां लगने वाला ऊंट मेला दुनिया में अपनी तरह का अनूठा तो है ही, साथ ही यह भारत के सबसे बड़े पशु मेलों में से भी एक है। मेले के समय पुष्कर में कई संस्कृतियों का मिलन सा देखने को मिलता है। एक तरफ तो मेला देखने के लिए विदेशी सैलानी बड़ी संख्या में पहुंचते हैं, तो दूसरी तरफ राजस्थान व आसपास के तमाम इलाकों से आदिवासी और ग्रामीण लोग अपने-अपने पशुओं के साथ मेले में शरीक होने आते हैं।
मेला रेत के विशाल मैदान में लगाया जाता है। आम मेलों की ही तरह ढेर सारी कतार की कतार दुकानें, खाने-पीने के स्टाल, सर्कस, झूले और न जाने क्या-क्या। ऊंट मेला और रेगिस्तान की नजदीकी है इसलिए ऊंट तो हर तरफ देखने को मिलते ही हैं। लेकिन कालांतर में इसका स्वरूप एक विशाल पशु मेले का हो गया है, इसलिए लोग ऊंट के अलावा घोड़े, हाथी, और बाकी मवेशी भी बेचने के लिए आते हैं। सैलानियों को इन पर सवारी का लुत्$फ मिलता है। लोक संस्कृति व लोक संगीत का शानदार न•ाारा देखने को मिलता है।
सांस्कृतिक कार्यक्रम- Rajasthan Me Paryatan Sthal
शाम का खास आकर्षण तो यहां आयोजित होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं। इनमें पारंपरिक लोक नर्तक और नर्तकियां लोक संगीत की धुन पर जब थिरकते हैं तो एक अलग ही समां बंध जाता है। घूमर, कालबेलिया, गेर, मांड, काफी घोड़ी और सपेरा नृत्य जैसे लोकनृत्य देख पर्यटक भी झूम उठते हैं। तमाम पर्यटक इन कार्यक्रमों का आनंद लेने से पूर्व सरोवर के घाटों पर जाते हैं।
जहां उस समय संध्या आरती और सरोवर में दीपदान का समय होता है। हरे पत्तों को जोड़कर उनके मध्य पुष्प एवं दीप रखकर जल में प्रवाहित कर दिया जाता है। इसे ही दीपदान कहते हैं। जल पर तैरते सैकड़ों दीपक और पानी में टिमटिमाता उनका प्रतिबिंब झिलमिल सितारों जैसा प्रतीत होता है। घाटों पर की गई लाइटिंग इस मंजर को और भी अद्भुत बना देती है।
पुष्कर मेले में देश-विदेश के सैलानियों की भागीदारी इतने बड़े पैमाने पर होती है कि वहां की तमाम आवासीय सुविधाएं कम पड़ जाती हैं। राजस्थान पर्यटन विकास निगम द्वारा उस समय विशेष रूप से एक पर्यटक गांव स्थापित किया जाता है। वहां सर्वोत्तम तम्बू में ठहरने की अच्छी व्यवस्था होती है। इनमें पर्यटकों के लिए सभी जरूरी सुविधाएं होती हैं। इस पर्यटक ग्राम में ठहरना भी अपने आप में अलग अनुभव होता है। इस तरह की तमाम विशेषताओं के कारण पुष्कर मेले का भ्रमण पर्यटकों के लिए यादगार बन जाता है।

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अलवर-
राजस्थान राज्य का एक खुबसूरत शहर है। जितना खुबसूरत यह शहर है उतने ही दिलचस्प अलवर के पर्यटन स्थल है। अलवर अरावली पर्वतमाला से घिरा एक ऐतिहासिक शहर भी है। इस नगर को महाराजा प्रतापसिंह ने सन् 1775 में मुगल बादशाह के कब्जे से जिता था।
अलवर का इतिहास अनेक शौर्य गाथाओ से भरा पडा है। आज भी यहा पर अरावली पहाड पर बना प्राचीन अलवर का किला बहादुर योद्धाओ की कुर्बानियो की याद को ताजा करता है। वैसे तो अलवर में घूमने लायक बहुत जगह है परंतु अपने इस लेख में हम अलवर के टॉप 5 दर्शनीय स्थलो के बारे जानेगें। और साथ ही साथ हम अलवर की सैर करेगे और अलवर के दर्शनीय स्थलो, अलवर टूरिस्ट पैलेस, अलवर के पर्यटन स्थल आदि के बारे में विस्तार से जानेगें।
अलवर का किला- Rajasthan Me Paryatan Sthal
अलवर के पर्यटन स्थल मे सबसे प्रसिद्ध स्थल है। अलवर के दर्शनीय स्थलो में इसे यहा का ताज कहा जाता है। यह किला अलवर के सबसे अधिक घूमी जाने वाली जगह में से भी एक है। अलवर का यह प्राचीन किला राजपूताना राज्य तथा मुगलबादशाह बाबर के समय से भी पहले का ऐतिहासिक स्थल है।
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इसी से आप अलवर के इतिहास का और उसकी प्राचीनता का अंदाजा लगा सकते है। इस ऐतिहासिक प्राचीन किले में बाबर और जहांगीर जैसे सुलतान भी अपने जीवन के कुछ वर्ष बिता चुके है। अलवर का किला अरावली पहाडी पर लगभग 304 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। इस किले का विस्तार भी बहुत बडा है। यह किला उत्तर से दक्षिण में लगभग 5 किलोमीटर तथा पूरब से पश्चिम में लगभग 1.6 किलोमीटर में फैला हुआ एक विशाल दुर्ग है।
इसमे 15 बडे तथा 51 छोटे बुर्ज है। अलवर के किले के अनेक द्वार है। जिनके नाम हिन्दू देवताओ के नाम पर है जैसे :– सूरज पोल, जय पोल, चंद्र पोल, कृष्ण पोल, लक्ष्मण पोल आदि। इस विशाल दुर्ग के अंदर अनेक महल, भवन व मंदिर है। जिनमे प्रमुख है :– जय महल, निकुंभ महल, सलीम सागर, सूरज कुंड, मूसी महारानी की छतरी आदि प्रमुख है।
विनय विलास महल- Rajasthan Me Paryatan Sthal
विनय विलास महल जिसे अलवर के पर्यटन स्थल में सिटी पैलेस के नाम से भी जाना जाता है। यह भव्य महल 18वी शताब्दी के मुगल तथा राजपूताना कला का संगम है। यहा की ऊपरी मंजिल पर एक संग्रहालय भी है। जहा अनेक दुर्लभ वस्तुए देखने को मिलती है।
अलवर म्यूजियम- Rajasthan Me Paryatan Sthal
इस मयूजियम में आप 18 वी तथा 19 वी शताब्दी की मुगल व राजपूताना कलाकृतियो तथा पेटिंग्स का विशाल संग्रह देख सकते है। पर्यटको के लिए यह संग्रहालय सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे तक खुला रहता है।
कम्पनी गार्डन- Rajasthan Me Paryatan Sthal
अलवर के पर्यटन स्थल में महत्वपूर्ण और मनोरंजक स्थल है। यह एक बहुत ही खूबसूरत बाग है। जिसको महाराजा शिवदानसिंह ने बनवाया था। यह गार्डन अपनी खूबसूरत हरियाली रंग बिरंगे फूल व मनमोहक फव्वारो के लिए अलवर के दर्शनीय स्थलो में प्रसिद्ध है। यह बाग अलवर में सैर करने का व पिकनिक का आनंद उठाने के लिए उपयुक्त स्थान है।
सिलीसेढ़ झील- Rajasthan Me Paryatan Sthal
अवलर शहर से लगभग 16 किलोमीटर की दूरी पर स्थित सिलीसेढ झील एक सुंदर पर्यटन स्थल है। यह झील तीन ओर से अरावली पर्वत माला से घिरी हुई है। यहा एक लेक पैलेस नाम का एक होटल भी है। जहा पर्यटक ठहर सकते है। यह झील काफी खूबरत है। अलवर भ्रमण पर आने वाले सैलानीयो को आकर्षित करती है।
त्रिपुरा सुंदरी- Rajasthan Me Paryatan Sthal
राजस्थान के बांसवाड़ा जिले में बांसवाड़ा शहर से 14 किलोमीटर दूर तलवाड़ा ग्राम पर ऊंची रौल श्रृखलाओं के नीचे सघन हरियाली की गोद में उमराई के छोटे से ग्राम में माताबाढ़ी में प्रतिष्ठित है मां त्रिपुरा सुंदरी।
कहा जाता है कि मंदिर के आस-पास पहले कभी तीन दुर्ग थे। शक्तिपुरी, शिवपुरी तथा विष्णुपुरी नामक इन तीन पुरियों में स्थित होने के कारण देवी का नाम त्रिपुरा सुन्दरी पड़ा।
मल्लीनाथ जी - Rajasthan Me Paryatan Sthal
जन्म – 1358 ई.
पिता – राव सलखा (मारवाड़ के राजा)
माता – जाणीदे
खिराज नहीं देने के कारण 1378 ई. में मालवा के सूबेदार निजामुद्दीन फिरोजशाह तुगलक की सेना की तेरह टुकड़ियों ने मल्लीनाथ जी पर हमला कर दिया और मल्लीनाथ जी ने इन्हें हराकर अपनी पद व प्रतिष्ठा में वृद्धि की। - Rajasthan Me Paryatan Sthal
प्रतिवर्ष इनकी याद में चैत्र कृष्ण एकादशी से चैत्र शुक्ल एकादशी तक तिलवाड़ा (बाड़मेर) में मल्लीनाथ पशु मेला आयोजित होता है, जहाँ पर मल्लीनाथ जी का प्रमुख मंदिर है।
यहाँ तिलवाड़ा के पास ही मालाजाल गाँव में मल्लीनाथ जी की पत्नी रूपादे का मंदिर है।
गुरु – उगमसी भाटी (पत्नी रूपादे की प्रेरणा से मल्लीनाथ जी उगमसी भाटी के शिष्य बने)
कुलदेवी चक्रेश्वरी नागणेची - Rajasthan Me Paryatan Sthal
राजस्थान के राठौड़ राजवंश की कुलदेवी चक्रेश्वरी नागणेची या नागणेचिया के नाम से प्रसिद्ध है । प्राचीन ख्यातों और इतिहास ग्रंथों के अनुसार मारवाड़ के राठौड़ राज्य के संस्थापक राव सिहा के पौत्र राव धूहड़ ( विक्रम संवत 1349-1366) ने सर्वप्रथम इस देवी की मूर्ति स्थापित कर मंदिर बनवाया ।
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राजा राव धूहड़ दक्षिण के कोंकण (कर्नाटक) में जाकर अपनी कुलदेवी चक्रेश्वरी की मूर्ति लाये और उसे पचपदरा से करीब 7 मील पर नागाणा गाँव में स्थापित की, जिससे वह देवी नागणेची नाम से प्रसिद्ध हुई। नमक के लिए विख्यात पचपदरा बाड़मेर जोधपुर सड़क का मध्यवर्ती स्थान है जिसके पास (7 कि.मी.) नागाणा में देवी मंदिर स्थित है।
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अष्टादश भुजाओं वाली नागणेची महिषमर्दिनी का स्वरुप है। बाज या चील उनका प्रतीक चिह्न है,जो मारवाड़ (जोधपुर),बीकानेर तथा किशनगढ़ रियासत के झंडों पर देखा जा सकता है। नागणेची देवी जोधपुर राज्य की कुलदेवी थी। चूंकि इस देवी का निवास स्थान नीम के वृक्ष के नीचे माना जाता था अतः जोधपुर में नीम के वृक्ष का आदर किया जाता था और उसकी लकड़ी का प्रयोग नहीं किया जाता था।
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बीकानेर में नागणेचीजी का मंदिर शहर से लगभग 2 की.मी. दक्षिण पूर्व में अवस्थित है। देवी का यह मंदिर एक विशाल और ऊँचे चबूतरे पर बना है, जिसके भीतर अष्टादश भुजाओं वाली नागणेचीजी की चाँदी की प्रतिमा प्रतिष्ठापित है। नागणेचीजी की यह प्रतिमा बीकानेर राज्य के संस्थापक राव बीका अन्य राजचिन्हों के साथ अपने पैतृक राज्य जोधपुर से यहाँ लाये थे।
नागणेचीजी बीकानेर और उाके आस पास के क्षेत्र में भी सर्वत्र वंदित और पूजित हैं। नवरात्र और दशहरे के अवसर पर अपार जनसमूह देवी के दर्शनार्थ मंदिर में आते हैं।

लौहगढ़ का किला - Rajasthan Me Paryatan Sthal
राजस्थान के भरतपुर जिले में स्तिथ ‘लौहगढ़ के किले’ को भारत का एक मात्र अजेय दुर्ग कहा जाता है क्योंकि मिट्टी से बने इस किले को कभी कोई नहीं जीत पाया यहाँ तक की अंग्रेज भी नहीं जिन्होंने इस किले पर 13 बार अपनी तोपों के साथ आक्रमण किया था।
राजस्थान को मरुस्थालों का राजा कहा जाता है। यहां अनेक ऐसे स्थान हैं जो पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। इन्हीं में से एक है लौहगढ़ का किला। इस किले का निर्माण 18वीं शताब्दी के आरंभ में जाट शासक महाराजा सूरजमल ने करवाया था।
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महाराजा सूरजमल ने ही भरतपुर रियासत बसाई थी। उन्होंने एक ऐसे किले की कल्पना की जो बेहद मजबूत हो और कम पैसे में तैयार हो जाए। उस समय तोपों तथा बारूद का प्रचलन अत्यधिक था, इसलिए इस किले को बनाने में एक विशेष युक्ति का प्रयोग किया गया जिससे की बारूद के गोले भी दीवार पर बेअसर रहे। तोप के गोले समा जाते थे दीवार के पेट में
यह राजस्थान के अन्य किलों के जितना विशाल नहीं है, लेकिन फिर भी इस किले को अजेय माना जाता है। इस किले की एक और खास बात यह है कि किले के चारों ओर मिट्टी के गारे की मोटी दीवार है। निर्माण के समय पहले किले की चौड़ी मजबूत पत्थर की ऊंची दीवार बनाई गयी।
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इन पर तोपो के गोलो का असर नहीं हो इसके लिये इन दीवारों के चारो ओर सैकड़ों फुट चौड़ी कच्ची मिट्टी की दीवार बनाई गयी और नीचे गहरी और चौड़ी खाई बना कर उसमे पानी भरा गया। ऐसे में पानी को पार कर सपाट दीवार पर चढ़ना तो मुश्किल ही नही अस्म्भव था। यही वजह है कि इस किले पर आक्रमण करना सहज नहीं था।
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क्योंकि तोप से निकले हुए गोले गारे की दीवार में धंस जाते और उनकी आग शांत हो जाती थी। ऐसी असंख्य गोले दागने के बावजूद इस किले की पत्थर की दीवार ज्यों की त्यों सुरक्षित बनी रही है। इसलिए दुश्मन इस किले के अंदर कभी प्रवेश नहीं कर सके। राजस्थान का इतिहास लिखने वाले अंग्रेज इतिहासकार जेम्स टाड के अनुसार इस किले की सबसे बड़ी खासियत है कि इसकी दीवारें जो मिट्टी से बनी हुई हैं। इसके बावजूद इस किले को फतह करना लोहे के चने चबाने से कम नहीं था।
13 बार के हमले के बाद भी अंग्रेज नहीं भेद सके इस किले को
इस फौलादी किले को राजस्थान का पूर्व सिंहद्वार भी कहा जाता है। यहां जाट राजाओं की हुकूमत थी जो अपनी दृढ़ता के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने इस किले को सुरक्षा प्रदान करने में कोई कसर नहीं छोड़ा।
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दूसरी तरफ अंग्रेजों ने इस किले को अपने साम्राज्य में लेने के लिए 13 बार हमले किए। अंग्रेजी सेना तोप से गोले उगलती जा रही थी और वह गोले भरतपुर की मिट्टी के उस किले के पेट में समाते जा रहे थे। 13 आक्रमणों में एक बार भी वो इस किले को भेद न सके। ऐसा कहा जाता है कि अंग्रेजों की सेना बार-बार हारने से हताश हो गई तो वहां से भाग गई। ये भी कहावत है कि भरतपुर के जाटों की वीरता के आगे अंग्रेजों की एक न चली
केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान या केवलादेव घना राष्ट्रीय उद्यान - Rajasthan Me Paryatan Sthal
केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान या केवलादेव घना राष्ट्रीय उद्यान भारत के राजस्थान में स्थित एक विख्यात पक्षी अभयारण्य है। इसको पहले भरतपुर पक्षी विहार के नाम से जाना जाता था। इसमें हजारों की संख्या में दुर्लभ और विलुप्त जाति के पक्षी पाए जाते हैं, जैसे साईबेरिया से आये सारस, जो यहाँ सर्दियों के मौसम में आते हैं
डीग महल अथवा डीग पैलेस - Rajasthan Me Paryatan Sthal
डीग महल अथवा डीग पैलेस भरतपुर ज़िले के डीग में स्थित है। डीग महल (अक्षांश 27° 25', रेखांश 77° 15') को ऐतिहासिक रूप से अठारहवीं शताब्दी के जाट शासकों के मजबूत शासन के साथ जोड़ा जाता है। बदन सिंह (1722-56 ई.) ने सिंहासन प्राप्त करने के पश्चात् समुदाय प्रमुखों को इकट्ठा किया तथा इस प्रकार वह भरतपुर में जाट घराने का प्रसिद्ध संस्थापक बना। डीग का शहरीकरण शुरू करने का श्रेय भी उसे ही जाता है। उसने ही इस स्थान को अपनी नई स्थापित जाट सत्ता के मुख्यालय के रूप में चुना था।
बिजोलिया - Rajasthan Me Paryatan Sthal
भीलवाड़ा में iश्री दिगंबर जैन पार्श्वनाथ अथिषा तीर्थक्षेत्र, बिजोलिया किला और मंदाकिनी मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। बूंदी - चित्तौड़गढ़ मार्ग पर स्थित, किले में एक शिव मंदिर भी है जिसे हजारेसवारा महादेव मंदिर के रूप में जाना जाता है। अपनी कला और वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध, यह एक लोकप्रिय पर्यटक आकर्षण है। तीर्थंकर पार्श्वनाथ को समर्पित, श्री दिगंबर जैन पार्श्वनाथ अतीश तीर्थक्षेत्र को 2700 वर्ष से अधिक माना जाता है।
मांडल गढ़ : - Rajasthan Me Paryatan Sthal
भीलवाड़ा से 54 किमी दूर स्थित इस स्थान पर ऐतिहासिक महत्व है, यह मध्यकाल के दौरान कई लड़ाइयों का साक्ष्य था। यह हल्दीघाटी युद्ध के दौरान महान मुगल सम्राट अकबर के शिविर के रूप में भी इतिहास में प्रसिद्ध है।
एक आधा मील लंबा किला कम प्राचीर की दीवार के साथ खड़ा है और जिस पहाड़ी पर यह खड़ा है, उसके शिखर को घेरने वाले गढ़ हैं। कहा जाता है कि इस किले का निर्माण राजपूतों के बलनोट वंश के एक प्रमुख ने किया था। किले में दो मंदिर हैं, एक भगवान शिव को समर्पित है जिसे जलेश्वर कहा जाता है और दूसरा कृष्ण को समर्पित है जिसे बड़ा मंदिर कहा जाता है।
शाहपुरा - Rajasthan Me Paryatan Sthal
भीलवाड़ा से 55 किमी दूर शाहपुरा है। चार द्वारों वाली एक दीवार से घिरे, यह 1804 में हिंदू के बीच स्थापित राम सनेही संप्रदाय के अनुयायियों के लिए तीर्थ स्थान है। संप्रदाय के पास एक पवित्र मंदिर है जिसे राम द्वार के नाम से जाना जाता है, राम दवारा के मुख्य पुजारी संप्रदाय के प्रमुख हैं।
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देश भर के तीर्थयात्री इस तीर्थस्थल पर साल भर आते हैं। फूल डोल का मेला के रूप में जाना जाने वाला वार्षिक मेला यहां पांच दिनों के लिए फाल्गुन शुक्ल (मार्च-अप्रैल) में आयोजित किया जाता है। शाहपुरा के उत्तरी भाग में एक बड़ा महल परिसर है, जो बालकनियों, टावरों और कपोलों द्वारा निर्मित है। यह अपने ऊपरी छतों से झील और शहर के सुंदर दृश्य प्रस्तुत करता है। केसरी सिंह, जोरावर सिंह और प्रताप सिंह बाराहट प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी थे जो शाहपुरा के थे। त्रिमूर्ति स्मारक, बाराहाट जी की हवेली और पिवन्या तालाब अन्य महत्वपूर्ण आकर्षण हैं।
क्यारा के बालाजी मंदिर - Rajasthan Me Paryatan Sthal
भीलवाड़ा यह हनुमान मंदिर स्थानीय लोगों और राजस्थान के लोगों के बीच एक विशेष स्थान रखता है। मंदिर का अद्भुत हिस्सा भगवान हनुमान की छवि है जो नक्काशीदार या स्थापित नहीं हैभगवान बालाजी की मूर्ति को एक विशाल पत्थर में उकेरा गया है जो स्वाभाविक रूप से प्रकट हुई है।
यह पटोला महादेव और घाट रानी की छवियों के लिए भी लोकप्रिय है जिन्हें चट्टान पर भी देखा जा सकता है। यह मंदिर भीलवाड़ा शहर से सिर्फ 10 किमी दूर है। बालाजी के दर्शन करने के बाद आप पटोला महादेव मंदिर, घाट रानी मंदिर, बीदा के माताजी मंदिर और नीलकंठ महादेव मंदिर जैसे अन्य स्थानों पर भी जा सकते हैं
मांडल - Rajasthan Me Paryatan Sthal
भीलवाड़ा शहर से लगभग 16 किलोमीटर की दूरी पर स्थित, मांडल है, जहाँ आप जग्गनाथ कच्छवाहा के किले को देख सकते हैं, जिसे बत्तीस खंबन की छतरी के नाम से जाना जाता है, नाम से ही स्पष्ट है, यह एक सुंदर छत्री (सेनोताफ) है जिसमें बलुआ पत्थर से बने 32-स्तंभ हैं। उनमें से कुछ के आधार पर और ऊपरी हिस्से पर सुंदर नक्काशी है। छत्री एक विशाल शिवलिंग को भी घेरती है।
चित्तौड़गढ़ का किला - Rajasthan Me Paryatan Sthal
उत्तर भारत के सबसे महत्वपूर्ण किलों में से एक चित्तौड़गढ़ का किला राजपूतों के साहस, शौर्य, त्याग, बलिदान और बड़प्पन का प्रतीक है। चित्तौड़गढ़ का यह किला राजपूत शासकों की वीरता, उनकी महिमा एवं शक्तिशाली महिलाओं के अद्धितीय और अदम्य साहस की कई कहानियों को प्रदर्शित करता है।
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राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले में बेराच नदी के किनारे स्थित चित्तौड़गढ़ के किले को न सिर्फ राजस्थान का गौरव माना जाता है, बल्कि यह भारत के सबसे विशालकाय किलों में से भी एक है, जिसका निर्माण 7वीं शताब्दी में मौर्य शासकों द्धारा किया गया था।
करीब 700 एकड़ की जमीन में फैला यह विशाल किला अपनी भव्यता, आर्कषण और सौंदर्य की वजह से साल 2013 में यूनेस्को द्धारा विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया है।
आपको बता दें कि इस किले के निर्माण को लेकर एक किवंदति भी है, जिसके अनुसार इस किले का निर्माण सिर्फ एक ही रात में महाभारत के समय पांच पाण्डु भाइयों में से सबसे बलशाली राजकुमार भीम ने अपने अद्भुत शक्ति का इस्तेमाल कर किया था।
भाटनेर किला - Rajasthan Me Paryatan Sthal
राजस्थान के हनुमानगढ़ में स्थित भाटनेर किला है बहुत ही पुराना और शानदार किला है। जो भारतीय इतिहास की कई सारी महत्वपूर्ण घटनाओं का गवाह रहा है। चारों तरफ मरूस्थल से घिरा यह किला राजस्थान की उत्तरी सीमा के प्रहरी के रूप में खड़ा है। सन् 1805 में बीकानेर के राजा सूरत सिंह ने यह किला भाटियों से जीत लिया था।
मंगलवार के दिन हुई इस जीत को हनुमान जी से जोड़ा गया और उसके बाद ही इसका नाम हनुमानगढ़ रखा गया। भटनेर किले की बनावट और मजबूती ऐसी थी कि इसका जिक्र खुद तैमूर लंग ने अपनी जीवनी 'तुजुके तैमूर' में किया था।
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किले का निर्माण 285 ई में भाटी राजा भूपत ने करवाया था। किले को पक्की ईंटों और चूने पत्थर से बनाया गया है। जिसमें 52 बुर्ज हैं। इसके ऊंचे दालान और दरबार तक घोड़ों के जाने के लिए संकरे रास्ते बने हुए हैं। इसके अलावा किले के अंदर हनुमान और शिव जी के कई मंदिर भी है। साथ ही शेर शाह सूरी की कब्र भी है
हवा महल - Rajasthan Me Paryatan Sthal
हवा महल का निर्माण लाल-गुलाबी बलुई पत्थर से किया गया था और इसकी रचना में मुग़लों और राजस्थानी शैलियों की वास्तुकला साफ़ झलकती है।
राजस्थान का यह खूबसूरत वास्तुकला का नमूना जयपुर के बीचोंबीच स्थापित है। चलिए उन प्रमुख तथ्यों को जानें जिनकी वजह से यह ऐतिहासिक ईमारत पर्यटकों के बीच मुख्य आकर्षण का केंद्र है। - Rajasthan Me Paryatan Sthal
- हवा महल, सर के ताज के आकर में बना हुआ है, जो भगवन श्रीकृष्ण के सर के ताज की तरह प्रतीत होता है। कहा जाता है कि सवाई प्रताप सिंह भगवान श्री कृष्ण के प्रति अत्यंत श्रद्धा भक्ति भाव रखते थे, जिसकी वजह से उनहोंने इस महल को उनके ताज का आकर दिया।
- हवा महल का मतलब साफ़ है हवा का महल। इस महल में लगभग 953 छोटे-छोटे झरोखे(खिड़कियां) हैं जिन्हें महल में हवा के हमेशा प्रवेश के लिए बनाया गया था। पुराने ज़माने में राजपूतों के परिवार गर्मी के दिनों में राहत के लिए इसी महल में निवास करते थे। यह जयपुर के मुख्य आकर्षणों में से एक है।
नाहरगढ़ किला – Rajasthan Me Paryatan Sthal
Nahargarh Fort राजस्थान की पिंक सिटी जयपुर के अरवल्ली पर्वत की उचाई पर बना हुआ है. शहर से इस किले को देखना निश्चित ही आनंदमयी और मनमोहक होता है.
आमेर किले और जयगढ़ किले के साथ नाहरगढ़ किला भी जयपुर शहर को कड़ी सुरक्षा प्रदान करता है. असल में किले का नाम पहले सुदर्शनगढ़ था लेकिन बाद में इसे नाहरगढ़ किले के नाम से जाना जाने लगा, जिसका मतलब “शेर का निवास स्थान” होता है. प्रसिद्ध प्रथाओ के अनुसार नाहर नाम नाहर सिंह भोमिया से लिया गया है, जिन्होंने किले के लिये जगह उपलब्ध करवाई और निर्माण करवाया. नाहर की याद में किले के अंदर एक मंदिर का निर्माण भी किया गया है, जो उन्ही के नाम से जाना जाता है.
नाहरगढ़ किल्ले का इतिहास – Nahargarh Fort History In Hindi - Rajasthan Me Paryatan Sthal
नाहरगढ़ किला 1734 में महाराजा सवाई जय सिंह द्वितीय, जयपुर के संस्थापक ने बनवाया था. इस पर्वत के चारो और सुरक्षा के लिये दीवारे बनी हुई है, कहा जाता है की यह किला पहले आमेर की राजधानी हुआ करता था. इस किले पर कभी किसी ने आक्रमण नही किया था लेकिन फिर भी यहाँ कई इतिहासिक घटनाये हुई है,
जिसमे मुख्य रूप से 18 वी शताब्दी में मराठाओ की जयपुर के साथ हुई लढाई भी शामिल है. 1847 के भारत विद्रोह के समय इस क्षेत्र के युरोपियन, जिसमे ब्रिटिशो की पत्नियाँ भी शामिल थी, सभी को जयपुर के राजा सवाई राम सिंह ने उनकी सुरक्षा के लिये उन्हें नाहरगढ़ किले में भेज दिया था. 1868 में राजा सवाई राम सिंह के शासनकाल में इस किले का विस्तार कीया गया था.
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1883-92 के समय में सवाई माधो सिंह ने नाहरगढ़ में 3 से 3.50 लाख की लागत लगाकर कई महलो का निर्माण करवाया. सवाई माधो सिंह द्वारा बनवाया गया माधवेंद्र भवन जयपुर की रानियों को बहोत सुट करता है और मुख्य महल जयपुर के राजा को ही सुट करता है. महल के कमरों को गलियारों से जोड़ा गया है और महल में कुछ रोचक और कोमल भित्तिचित्र भी बने हुए है. नाहरगढ़ किला महाराजाओ का निवास स्थान भी हुआ करता था, अप्रैल 1944 तक जयपुर सरकार इसका उपयोग कार्यालयीन कामो के लिये करती थी.
आमेर दुर्ग - Rajasthan Me Paryatan Sthal
आमेर दुर्ग (जिसे आमेर का किला या आंबेर का किला नाम से भी जाना जाता है) भारत के राजस्थान राज्य की राजधानी जयपुर के आमेर क्षेत्र में एक ऊंची पहाड़ी पर स्थित एक पर्वतीय दुर्ग है। यह जयपुर नगर का प्रधान पर्यटक आकर्षण है।
आमेर का कस्बा मूल रूप से स्थानीय मीनाओ द्वारा बसाया गया था, जिस पर कालांतर में कछवाहा राजपूत में मान सिंह प्रथम ने राज किया व इस दुर्ग का निर्माण करवाया। यह दुर्ग व महल अपने कलात्मक विशुद्ध हिन्दू वास्तु शैली के घटकों के लिये भी जाना जाता है। दुर्ग की विशाल प्राचीरों, द्वारों की शृंखलाओं एवं पत्थर के बने रास्तों से भरा ये दुर्ग पहाड़ी के ठीक नीचे बने मावठा सरोवर को देखता हुआ प्रतीत होता है।
जयगढ़ किले - Rajasthan Me Paryatan Sthal
जयगढ़ किले को विजय किले के रूप में भी जाना जाता है। यह जयपुर के विख्यात पर्यटन स्थलों में से एक है जो शहर से 15 किमी. की दुरी पर स्थित है। यह इगल्स के हील पर आमेर किले से 400 फूट की ऊंचाई पर स्थित है। इस किले के दो प्रवेश द्वार है जिन्हें दंगुर दरवाजा और अवानी दरवाजा कहा जाता है जो क्रमशः दक्षिण और पूर्व दिशाओ पर बने हुए है।
जयगढ़ किला महाराजा जय सिंह ने 18वीं सदी में बनवाया था और यह शानदार किला जयपुर में अरावली की पहाडि़यों पर चील का टीला पर स्थित है। विद्याधर नाम के वास्तुकार ने इसका डिज़ाइन बनाया था और इस किले को जयपुर शहर की समृद्ध संस्कृति को दर्शाने के लिए बनवाया गया था।
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इस किले के उंचाई पर स्थित होने के कारण इससे पूरे जयपुर शहर को देखा जा सकता है। यह मुख्य रुप से राजाओं की आवासीय इमारत था लेकिन बाद में इसका इस्तेमाल शस्त्रागार के तौर किया जाने लगा। इतिहास और वास्तुकला जयगढ़ किले के पीछे एक समृद्ध इतिहास है।
मुगल काल में जयगढ़ किला राजधानी से 150 मील दूर था और सामान की बहुतायत के कारण मुख्य तोप ढुलाई बन गया। यह हथियारों, गोला बारुद और युद्ध की अन्य जरुरी सामग्रियों के भंडार करने की जगह भी बन गया।
इसकी देखरेख दारा शिकोह करते थे, लेकिन औरंगज़ेब से हारने के बाद यह किला जय सिंह के शासन में आ गया और उन्होंने इसका पुनर्निमाण करवाया। इस किले के इतिहास से जुड़ी एक और रोचक कहानी है।
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लोककथाओं के अनुसार, शासकों ने इस किले की मिट्टी में एक बड़ा खजाना छुपाया था। हालांकि एैसे खजाने को कभी बरामद नहीं किया जा सका। पहाड़ की चोटी पर स्थित होने के कारण इस किले से जयपुर का मनोरम नज़ारा देखा जा सकता है। बनावट के हिसाब से यह किला बिलकुल अपने पड़ोसी किले आमेर किले के जैसा दिखता है जो कि इससे 400 मीटर नीचे स्थित है।
विक्ट्री फोर्ट के नाम से भी प्रसिद्ध यह किला 3 किलोमीटर लंबा और 1 किलोमीटर चौड़ा है। इस किले की बाहरी दीवारें लाल बलुआ पत्थरों से बनी हैं और भीतरी लेआउट भी बहुत रोचक है। इसके केंद्र में एक खूबसूरत वर्गाकार बाग मौजूद है। इसमें बड़े बड़े दरबार और हॉल हैं जिनमें पर्देदार खिड़कियां हैं। इस किले में दुनिया की सबसे बड़ी तोप भी है।
इस विशाल महल में लक्ष्मी विलास, विलास मंदिर, ललित मंदिर और अराम मंदिर हैं जो शासन के दौरान शाही परिवार रहने पर इस्तेमाल करते थे। दो पुराने मंदिरों के कारण इस किले का आकर्षण और बढ़ जाता है, जिसमें से एक 10वीं सदी का राम हरिहर मंदिर और 12वीं सदी का काल भैरव मंदिर है।
बड़ी-बड़ी दीवारों के कारण यह किला हर ओर से अच्छी तरह सुरक्षित है। यहां एक शस्त्रागार और योद्धाओं के लिए एक हॉल के साथ एक संग्रहालय है जिसमें पुराने कपड़े, पांडुलिपियां, हथियार और राजपूतों की कलाकृतियां हैं।
इसके मध्य में एक वाच टावर है जिससे आसपास का खूबसूरत नज़ारा दिखता है पास ही में स्थित आमेर किला जयगढ़ किले से एक गुप्त मार्ग के ज़रिए जुड़ा है। इसे आपातकाल में महिलाओं और बच्चों को निकालने के लिए बनाया गया था। आमेर किले में पानी की आपूर्ति के लिए इसके केंद्र में एक जलाशय भी है।
जैसलमेर - Rajasthan Me Paryatan Sthal
राजस्थान का सबसे ख़ूबसूरत शहर है और जैसलमेर पर्यटन का सबसे आकर्षक स्थल माना जाता है। जैसलमेर ज़िले की पोकरण तहसील में एक धार्मिक आस्थास्थल है, राजस्थान के प्रसिद्ध लोक देवता रामदेवरा जी की समाधि यहाँ स्थित हैं।
कुछ लोगों का यह मत है कि सन् 1458 ई. में रामदेव जी ने यहाँ स्वयं समाधि ली थी। 'रुणेचा' रामदेवरा का प्राचीन नाम है। यहाँ लगने वाला मेला राज्य में साम्प्रदायिक सदभाव का प्रतीक माना जाता है क्योंकि रामदेव जी हिन्दू और मुस्लिम दोनों समुदाय के आराध्य देवता माने जाते हैं। रामदेवरा जी की समाधि के निकट ही बीकानेर के महाराजा गंगासिंह द्वारा 1931 में बनवाया गया
भव्य मंदिर स्थित हैं। भादों सुदी दो से भादों सुदी ग्यारह तक यहाँ प्रतिवर्ष एक विशाल मेले का आयोजन किया जाता हैं। इस अवसर पर 'कामड' जाति की स्त्रियों द्वारा किया जाने वाला 'तेरह ताली नृत्य' विशेष आकर्षण होता हैं। ये लोग रामदेव जी के भोपे होते हैं। रामदेवरा रेल और सड़क मार्ग द्वारा प्रमुख नगरों से जुड़ा हुआ
खेतड़ी तांबे - Rajasthan Me Paryatan Sthal
खेतड़ी तांबे (कॉपर) की खदानों के लिए प्रसिद्ध है। यहां भारत सरकार का सार्वजनिक उपक्रम हिंदुस्तान कॉपर लिमिटेड द्वारा तांबे के अयस्क का उत्पादन एवं उसका परिशोधन किया जाता है। यह राजस्थान राज्य में स्थित है।
जसवंत थड़ा - Rajasthan Me Paryatan Sthal
जसवंत थड़ा सफ़ेद संगमरमर से बना एक स्मारक है जो की मेहरानगढ़ के जोधपुर दुर्ग के पास स्थित है। इसे सन 1899 में जोधपुर के महाराजा जसवंत सिंह द्वितीय (1888-1895) की यादगार में उनके उत्तराधिकारी महाराजा सरदार सिंह जी ने बनवाया था
दिलवाड़ा जैन मंदिर - Rajasthan Me Paryatan Sthal
दिलवाड़ा जैन मंदिर मंदिर राजस्थान की अरावली पहाड़ियों के बीच स्थित जैनियों का सबसे सबसे सुंदर तीर्थ स्थल है। इसे देलवाडा मंदिर, और पाँच मंदिरों का एक समूह के नाम से भी जानते हैं । ये राजस्थान के सिरोही जिले के माउंट आबू नगर में स्थित हैं। इन मंदिरों का निर्माण ग्यारहवीं और तेरहवीं शताब्दी के बीच हुआ था। यह शानदार मंदिर जैन धर्म के र्तीथकरों को समर्पित हैं।
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दिलवाड़ा के मंदिरों में विमल वासाही मंदिर प्रथम र्तीथकर ऋषभदेव जी को समर्पित सर्वाधिक प्राचीन है , जो 1031 ई. में बना था। इसी क्रम में बाईसवें र्तीथकर नेमीनाथ को समर्पित लुन वासाही मंदिर भी काफी लोकप्रिय है। यह मंदिर 1231 ई. में वास्तुपाल और तेजपाल नामक दो भाईयों द्वारा बनवाया गया था। मंदिरों के लगभग 48 स्तम्भों में नृत्यांगनाओं की आकृतियां बनी हुई हैं। दिलवाड़ा के मंदिर और मूर्तियां मंदिर निर्माण कला का उत्तम उदाहरण हैं।
राजसमन्द झील - Rajasthan Me Paryatan Sthal
राजसमन्द झील राजस्थान के शहर राजसमन्द में स्थित है। इस झील का निर्माण मेवाड़ के राजा राजसिंह ने गोमती नदी का पानी रोककर (1662-76 ई.) करवाया था। चालीस लाख रुपये की लागत से बनवाई गई राजसमन्द झील मेवाड़ की विशालतम झीलों में से एक है। इस झील का निर्माण गोमती, केलवा तथा ताली नदियों पर बाँध बनाकर किया गया है। सात किलोमीटर लम्बी व तीन किलोमीटर चौडी यह झील 55 फीट गहरी है।
राजसमन्द झील की पाल, नौचौकी व इस ख़ूबसूरत झील के पाल पर बनी छतरियों की छतों, स्तम्भों तथा तोरण द्वार पर की गयी मूर्तिकला व नक़्क़ाशी देखकर स्वतः ही दिलवाड़ा के जैन मंदिरों की याद आ जाती है। झील के किनारे की सीढ़ियों को हर तरफ़ से गिनने पर योग नौ ही होता है, इसलिए इसे 'नौचौकी' कहा जाता है।
यहीं पर 25 काले संगमरमर की चट्टानों पर मेवाड़ का पूरा इतिहास संस्कृत में उत्कीर्ण है। इसे 'राजप्रशस्ति' कहते हैं, जो की संसार की सबसे बड़ी प्रशस्ति है
पिछौला झील - Rajasthan Me Paryatan Sthal
पिछौला झील राजस्थान राज्य में उदयपुर में स्थित है |इस झील का निर्माण १४वी शताब्दी में हुआ था | उदयपुर शहर की खोज महाराजा उदय सिंह द्वितीय ने की थी | और उसी के नाम पर इस शहर का नाम उदयपुर पड़ा |
महाराजा उदय सिंह द्वितीय ने इस झील का निर्माण करवाया था | झील के पास दो द्वीप हैं और झील के दोनों और महल बने हुए हैं। एक महल का नाम है जग निवास, जो अब लेक पैलेस होटल बन चुका है और दूसरा महल का नाम है जग मंदिर, उदयपुर।
इस दोनों महलों में राजस्थानी संस्कृति और राजस्थानी कलाकारों द्वारा शिल्पकला के बेहतरीन उदाहरण द्रिसटोगोचर होते हैं,इन्हें नाव द्वारा जाकर इन्हें देखा जा सकता है
फतेह सागर झील - Rajasthan Me Paryatan Sthal
फतेह सागर झील उदयपुर की एक कृत्रिम झील है जो 1888 में महाराणा फतेह सिंह द्वारा एक बाढ़ से जाने के बाद निर्मित है। यह उदयपुर शहर की चार झीलों में से एक है जिसके चारों ओर नीला पानी और हरीयाली है जिस कारण इसे 'दूसरा कश्मीर' का उपनाम दिया गया है।
उदयपुर की फतेह सागर झील प्रमुख आकर्षणों में से एक है। झील के बीच में तीन छोटे द्वीप हैं। नेहरू पार्क सभी द्वीपों में सबसे बड़ा है यह एक लोकप्रिय उद्यान है जिसमें एक रेस्तरां और चिड़ियाघर है। नेहरू पार्क मोटर नावों की मदद से पहुँचा जा सकता है।
राम प्रताप महल, शाही परिवारों का आवासीय स्थान भी फतेह सागर के तट पर स्थित है। फतेह सागर वाटर कैनाल से पिचोला झील और रंग सागर झील से जुड़ा हुआ है। अपने महान ऐतिहासिक महत्व और खूबसूरत प्राकृतिक दृश्यों के कारण इस जगह को पूरी दुनिया से पर्यटक देखने आते है।
दोस्तों यदि आपको Rajasthan Me Paryatan Sthal - राजस्थान में पर्यटन स्थल - Best यह पोस्ट अच्छी लगी हो तो इस Rajasthan Me Paryatan Sthal - राजस्थान में पर्यटन स्थल - Best पोस्ट को Like & Comment करे तथा Share भी करे और हमे बताये भी ये पोस्ट आपको केसी लगी धन्यवाद – Pankaj Taak
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