Sitabari Fair of Baran, Rajasthan सीताबाड़ी का मेला, बारां (राजस्थान)
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सीताबाड़ी का मेले का वर्णन
सीताबाड़ी मेला राजस्थान के शहर सीताबाड़ी में आयोजित होने वाला एक वार्षिक मेला है। बारां जिले में केलवाड़ा कस्बे के पास स्थित सीताबाड़ी मंदिर भारत के प्रसिद्ध धार्मिक स्थलों में से एक माना जाता है। इसका हिंदूओं के लिए धार्मिक और ऐतिहासिक महत्त्व है।
सीताबाड़ी का मेला 12 जिले के शाहबाद तहसील के केलवाड़ा गांव के पास सीताबाड़ी नामक स्थान पर मनाया जाता है इस स्थान पर यह मेला ज्येष्ठ महीने की अमावस्या के आसपास 15 दिन के लिए भरता है
सीताबाड़ी स्थान जहां पर मेला भरता है यह बारा जिले के केलवाड़ा गांव से एक - दो किलोमीटर की दूरी पर स्थित है तीर्थ यात्रियों के लिए साधन की व्यवस्था चलाई जाती है यहां से रेलवे स्टेशन निकटतम बारा का है जो केलवाड़ा से 75 किलोमीटर की दूरी पर है
यह मेला सहरिया जनजाति के कुंभ के रूप में भी जाना जाता है रामायण काल में भगवान राम ने अपनी पत्नी सीता का परित्याग कर दिया था तब सीताजी को उनके देवर लक्ष्मण जी ने उनके निर्वासन की अवधि में सेवा के लिए इसी स्थान पर जंगल में वाल्मीकि ऋषि के आश्रम में छोड़ा था कहा जाता है कि जब सीता जी को प्यास लगी थी तो सीता जी के लिए पानी लाने के लिए लक्ष्मण जी ने इसी स्थान पर धरती में एक तीर मारा जहां से जल धारा उत्पन्न हुई जिसे लक्ष्मण बभूका या लक्ष्मण कुंड के रूप में जाना जाता है
बारा शहर - Sitabari Fair of Baran, Rajasthan
नगर के मध्य में स्थित श्री कल्याणराय (श्रीजी) का मंदिर इस अंचल के लोगों का श्रद्धा केन्द्र है। मंदिर का निर्माण बूंदी की राजमाता रायकुंवरी बाई ने संवत् 1537 में करवाया था। मंदिर के गर्भगृह में विराजमान श्री कल्याणराय जी की प्रतिमा को रणथम्भौर के किले से लाकर यहाँ प्रतिष्ठापित किया गया था। चौमुखा बाजार में स्थित सांवलाजी का प्राचीन मंदिर बहुत कलात्मक है।
महाराव भीमसिंह (प्रथम) ने संवत् 1766 में इस मंदिर का निर्माण करवाया था। बारां नगर का एक प्रमुख मंदिर डोल तालाब के समीपस्थ है जिसे प्यारे रामजी का मंदिर कहा जाता है। रामगढ़ रामगढ़ दसवीं शताब्दी में मलय वर्मन तथा तेरहवीं शताब्दी में मेढ़त राजाओं के अधीन था। रामगढ़ की डूंगरी के घेरे में माला की तलाई, पुष्कर सागर, बड़ा तालाब व नौलखा तालाब है। भण्डदेवरा रामगढ़ का प्राचीन शैव प्रतीक वाम मार्गीय कलाओं से युक्त शिव आधारित है।

राजस्थान के अन्य मेले
- सीताबाड़ी तीर्थ -Sitabari Fair of Baran, Rajasthan
- भण्डदेवरा - Sitabari Fair of Baran, Rajasthan
- कपिलधारा - Sitabari Fair of Baran, Rajasthan
- काकूनी - Sitabari Fair of Baran, Rajasthan
- लक्ष्मीनाथ मंदिर - Sitabari Fair of Baran, Rajasthan
- ब्रह्माणी माता का मंदिर - Sitabari Fair of Baran, Rajasthan
- भण्डदेवरा के शिव मंदिर - Sitabari Fair of Baran, Rajasthan
- बारा क्षेत्र के दुर्ग - Sitabari Fair of Baran, Rajasthan
- पुष्कर – Sitabari Fair of Baran, Rajasthan
- क्यारा के बालाजी मंदिर - Sitabari Fair of Baran, Rajasthan
- त्रिपुरा सुंदरी– Sitabari Fair of Baran, Rajasthan
- दिलवाड़ा जैन मंदिर – Sitabari Fair of Baran, Rajasthan
- मल्लीनाथ जी - Sitabari Fair of Baran, Rajasthan
- कुलदेवी चक्रेश्वरी नागणेची – Rajasthan Me Paryatan Sthal
- पशु मेला
सीताबाड़ी तीर्थ -Sitabari Fair of Baran, Rajasthan
केलवाड़ा कस्बे के निकट प्राकृतिक छटा से भरपूर सीताबाड़ी एक धार्मिक एवं रमणीक स्थल है। आदिवासी बनवासी क्षेत्र में यह स्थान लोकतीर्थ के रूप में मान्य व पूजित है। सीताबाड़ी के बारे में लोक आस्था प्रचलित है कि भगवान राम के परित्याग के उपरांत सीता ने अपना निर्वासन काल यहाँ वाल्मीकि आश्रम में व्यतीत किया था। सीताबाड़ी में कुण्ड है। पास में ही सीता कुटी है। लक्ष्मण कुण्ड, सीता कुण्ड व राठौडी, वाल्मीकि आश्रम की प्रमुखता के साथ सीताबाड़ी यहाँ की सहरिया लकड़ी। जनजाति का प्रमुख आस्था स्थल है।
भण्डदेवरा - Sitabari Fair of Baran, Rajasthan
रामगढ़ का प्राचीन शैव प्रतीक वाम मार्गीय कलाओं से युक्त शिव मंदिर भण्डदेवरा' दसवीं सदी में निर्मित है जो खजुराहो शैली पर आधारित है। शिवालय के गर्भगृह में लगे एक शिलालेख के अनुसार सम्वत् 1219 में इस मंदिर का निर्माण हुआ। यहाँ पूर्व में 108 मंदिरों का समूह था।
कपिलधारा - Sitabari Fair of Baran, Rajasthan
कपिलधारा एक प्राकृतिक रमणीक स्थल है। यहाँ वर्षपर्यन्त जल भरा रहता है। किले के पास तालाब की स्थिति बहुत प्राकृतिक है। किले के झरोखों से नयनाभिराम दृश्य अवलोकित होते हैं।
काकूनी - Sitabari Fair of Baran, Rajasthan
परवन नदी के किनारे पहाड़ी पर पूर्व में यहाँ कभी 108 मंदिरों की श्रृंखला थी। अब केवल 15-16 देवालयों के ध्वंसावशेष हैं। अटरु के समीप पश्चिम में ऊंचे टीले पर गड़गच्च प्राचीन मंदिर के खण्डहर आज भी उच्चकोटि की शिल्पकला का बखान करते हैं। अटरु के राधाकृष्णन मंदिर में शिव, पार्वती, दुर्गा, गणेश, राधा व कृष्ण आदि की 77 मूर्तियाँ हैं जिनकी पूजा-अर्चना आज भी की जाती है।
लक्ष्मीनाथ मंदिर - Sitabari Fair of Baran, Rajasthan
मांगरोल तहसील के ग्राम श्रीनाथ का पुराना लक्ष्मीनाथ मंदिर पुरातात्विक महत्त्व की दृष्टि से बेजोड़ है। शिखरबंध मंदिर के तोरणद्वार पर कलात्मक हाथी बने हुए हैं।
ब्रह्माणी माता का मंदिर - Sitabari Fair of Baran, Rajasthan
राजमा सोरसन गाँव के समीप ब्रह्माणी माता का एक विशाल प्राचीन गर्भगड़ा मंदिर है। समूचे विश्व में संभवतः यह अपनी किस्म का अकेला मंदिर किले है, जहाँ देवी की पीठ का शृंगार होता है, पीठ की पूजा अर्चना की जाती है, पीठ को ही भोग लगाया जाता है और भक्तगण भी देवी की मंदिर का पीठ के ही दर्शन करते हैं । विगत 400 वर्षों से मंदिर में अखण्ड ज्योति जल रही है
भण्डदेवरा के शिव मंदिर - Sitabari Fair of Baran, Rajasthan
हाड़ौती का खजुराहो कहा जाने वाला यह मंदिर 10वीं शताब्दी में निर्मित हुआ है। भण्डदेवरा का अर्थ टूटा-फूटा देवालय होता है। यह देवालय पंचायतन शैली का उत्कृष्ट नमूना है। यहाँ मिथुन मुद्रा में अनेक आकृतियाँ उत्कीर्ण है इसलिए इसे राजस्थान का मिनी खजुराहो भी कहा जाता है
बारा क्षेत्र के दुर्ग - Sitabari Fair of Baran, Rajasthan
बारां क्षेत्र में कई किले भी विद्यमान हैं। इनमें से शाहबाद एवं शेरगढ़ के किले पुरातत्व की दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं। इनके अलावा गूगोर, नाहरगढ़, भंवरगढ़, केलवाड़ा, रामगढ़ एवं
कस्वाथाना के किले भी दर्शनीय हैं।
'शाहबाद का किला' बारां-शिवपुरी मार्ग पर एक गिरि दुर्ग है जो मुकन्दरा पर्वत श्रेणी की एक पहाड़ी पर स्थित है।
अटरु-खानपुर मार्ग पर स्थित ऐतिहासिक नगर 'शेरगढ़' जो कभी कोषवर्धन' के नाम से जाना जाता था। नगर के साथ ही एक छोटी पहाड़ी पर शेरगढ़ दुर्ग है। नगर एवं दुर्ग दोनों के परकोटे अभी तक लगभग सुरक्षित हैं। परवन नदी के किनारे स्थित इस दुर्ग को शेरशाह सूरी ने शेरगढ़ का नाम दिया। इस दुर्ग का स्थापत्य अत्यधिक सुंदर है। यहाँ के सोमनाथ महादेव मंदिर, लक्ष्मीनाथ मंदिर, दुर्गा मंदिर, अमीर खां के महल, प्राचीन बावड़ी, मस्जिद और अन्य राजप्रासाद स्थापत्य के अनुपम उदाहरण हैं।
जिले के केलवाड़ा कस्बे के निकट सीताबाड़ी तीर्थ पर ज्येष्ठ मास की अमावस्या को विशाल 'सीताबाड़ी का मेला' भरता है जो जिले का सबसे बड़ा लक्खीमेला है। वनवासी जनजाति सहरिया परिवारों के लिए सीताबाड़ी का मेला कुंभ मेला है। यहाँ पशु मेला भी लगता है।
बारां जिला मुख्यालय पर भाद्रपद शुक्ला एकादशी (जलझूलनी), जिसे लोक भाषा में डोल ग्यारस भी कहते हैं, को बारां नगर के डोल तालाब किनारे एक पखवाड़े तक ‘डोल मेला' लगता है। अंता-बारां मार्ग पर सोरसन ग्राम के निकट 'ब्रह्माणी माता का मेला' लगता है। यहाँ पशु मेले में अन्य पशुओं के साथ गधों की भी खूब खरीद फरोख्त होती है।

सिताबाड़ी मेला व अन्य प्रमुख मेले
पुष्कर – Sitabari Fair of Baran, Rajasthan
राजस्थान के अजमेर जिले से करीब 15,16 किमी दूरी पर पुष्कर बसा हुआ है । कार्तिक माह की पूर्णिमा को यहा मेला लगता है। यहा ब्रह्मा जी का मन्दिर है जो विश्व का एक मात्र मन्दिर है खूबसूरत पहाडियों के बीच यह अतधिक सुन्दर स्थान है।
यहा का मेला देखने देश विदेशों से सैलानी आते हैं। यहा आस पास क गावो से लोग अपने पशुओ को लेकर आते हैं। इसे पशु मेला भी कहा जाता है यहा पशुओ की विभिन्न प्रतिप्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाताहै। कई झूले कई प्रकार के व्यंजन आदि यहा मिल जाते हैं।कार्तिक मास की एकादशी से पूर्णिमा तक 5 दिन विभिन्न प्रकार की प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती
पुष्कर मेले की क्या विशेषताएं
पुष्कर मेला कार्तिक शुक्ल एकादशी से पूर्णिमा तक लगता है। दूसरा मेला वैशाख शुक्ला एकादशी से पूर्णिमा तक रहता है। मेलों के रंग राजस्थान में देखते ही बनते हैं। ये मेले मरुस्थल के गांवों के कठोर जीवन में एक नवीन उत्साह भर देते हैं। लोग रंग-बिरंगे परिधानों में सज-धजकर जगह-जगह पर नृत्य-गान आदि समारोहों में भाग लेते हैं। यहां पर काफी मात्रा में भीड़ देखने को मिलती है। लोग इस मेले को श्रद्धा, आस्था और विश्वास का प्रतीक मानते हैं।
पुष्कर मेला थार मरुस्थल का एक लोकप्रिय व रंगों से भरा मेला है। यह कार्तिक शुक्ल एकादशी को प्रारम्भ हो कार्तिक पूर्णिमा तक पांच दिन तक आयोजित किया जाता है। मेले का समय पूर्ण चन्द्रमा पक्ष, अक्टूबर-नवम्बर का होता है। पुष्कर झील भारतवर्ष में पवित्रतम स्थानों में से एक है। प्राचीनकाल से लोग यहां पर प्रतिवर्ष कार्तिक मास में एकत्रित हो भगवान ब्रह्मा की पूजा उपासना करते हैं।
त्रिपुरा सुंदरी– Sitabari Fair of Baran, Rajasthan
राजस्थान के बांसवाड़ा जिले में बांसवाड़ा शहर से 14 किलोमीटर दूर तलवाड़ा ग्राम पर ऊंची रौल श्रृखलाओं के नीचे सघन हरियाली की गोद में उमराई के छोटे से ग्राम में माताबाढ़ी में प्रतिष्ठित है मां त्रिपुरा सुंदरी।
कहा जाता है कि मंदिर के आस-पास पहले कभी तीन दुर्ग थे। शक्तिपुरी, शिवपुरी तथा विष्णुपुरी नामक इन तीन पुरियों में स्थित होने के कारण देवी का नाम त्रिपुरा सुन्दरी पड़ा।
क्यारा के बालाजी मंदिर - Sitabari Fair of Baran, Rajasthan
भीलवाड़ा यह हनुमान मंदिर स्थानीय लोगों और राजस्थान के लोगों के बीच एक विशेष स्थान रखता है। मंदिर का अद्भुत हिस्सा भगवान हनुमान की छवि है जो नक्काशीदार या स्थापित नहीं हैभगवान बालाजी की मूर्ति को एक विशाल पत्थर में उकेरा गया है जो स्वाभाविक रूप से प्रकट हुई है।
यह पटोला महादेव और घाट रानी की छवियों के लिए भी लोकप्रिय है जिन्हें चट्टान पर भी देखा जा सकता है। यह मंदिर भीलवाड़ा शहर से सिर्फ 10 किमी दूर है। बालाजी के दर्शन करने के बाद आप पटोला महादेव मंदिर, घाट रानी मंदिर, बीदा के माताजी मंदिर और नीलकंठ महादेव मंदिर जैसे अन्य स्थानों पर भी जा सकते हैं
दिलवाड़ा जैन मंदिर – Sitabari Fair of Baran, Rajasthan
दिलवाड़ा जैन मंदिर मंदिर राजस्थान की अरावली पहाड़ियों के बीच स्थित जैनियों का सबसे सबसे सुंदर तीर्थ स्थल है। इसे देलवाडा मंदिर, और पाँच मंदिरों का एक समूह के नाम से भी जानते हैं । ये राजस्थान के सिरोही जिले के माउंट आबू नगर में स्थित हैं। इन मंदिरों का निर्माण ग्यारहवीं और तेरहवीं शताब्दी के बीच हुआ था। यह शानदार मंदिर जैन धर्म के र्तीथकरों को समर्पित हैं।
दिलवाड़ा के मंदिरों में विमल वासाही मंदिर प्रथम र्तीथकर ऋषभदेव जी को समर्पित सर्वाधिक प्राचीन है , जो 1031 ई. में बना था। इसी क्रम में बाईसवें र्तीथकर नेमीनाथ को समर्पित लुन वासाही मंदिर भी काफी लोकप्रिय है। यह मंदिर 1231 ई. में वास्तुपाल और तेजपाल नामक दो भाईयों द्वारा बनवाया गया था। मंदिरों के लगभग 48 स्तम्भों में नृत्यांगनाओं की आकृतियां बनी हुई हैं। दिलवाड़ा के मंदिर और मूर्तियां मंदिर निर्माण कला का उत्तम उदाहरण हैं।
मल्लीनाथ जी - Sitabari Fair of Baran, Rajasthan
जन्म – 1358 ई.
पिता – राव सलखा (मारवाड़ के राजा)
माता – जाणीदे
खिराज नहीं देने के कारण 1378 ई. में मालवा के सूबेदार निजामुद्दीन फिरोजशाह तुगलक की सेना की तेरह टुकड़ियों ने मल्लीनाथ जी पर हमला कर दिया और मल्लीनाथ जी ने इन्हें हराकर अपनी पद व प्रतिष्ठा में वृद्धि की।
प्रतिवर्ष इनकी याद में चैत्र कृष्ण एकादशी से चैत्र शुक्ल एकादशी तक तिलवाड़ा (बाड़मेर) में मल्लीनाथ पशु मेला आयोजित होता है, जहाँ पर मल्लीनाथ जी का प्रमुख मंदिर है।
यहाँ तिलवाड़ा के पास ही मालाजाल गाँव में मल्लीनाथ जी की पत्नी रूपादे का मंदिर है।
गुरु – उगमसी भाटी (पत्नी रूपादे की प्रेरणा से मल्लीनाथ जी उगमसी भाटी के शिष्य बने)
कुलदेवी चक्रेश्वरी नागणेची – Rajasthan Me Paryatan Sthal
राजस्थान के राठौड़ राजवंश की कुलदेवी चक्रेश्वरी नागणेची या नागणेचिया के नाम से प्रसिद्ध है । प्राचीन ख्यातों और इतिहास ग्रंथों के अनुसार मारवाड़ के राठौड़ राज्य के संस्थापक राव सिहा के पौत्र राव धूहड़ ( विक्रम संवत 1349-1366) ने सर्वप्रथम इस देवी की मूर्ति स्थापित कर मंदिर बनवाया ।
पशु मेला
कार्तिक के महीने में यहां लगने वाला ऊंट मेला दुनिया में अपनी तरह का अनूठा तो है ही, साथ ही यह भारत के सबसे बड़े पशु मेलों में से भी एक है। मेले के समय पुष्कर में कई संस्कृतियों का मिलन सा देखने को मिलता है। एक तरफ तो मेला देखने के लिए विदेशी सैलानी बड़ी संख्या में पहुंचते हैं, तो दूसरी तरफ राजस्थान व आसपास के तमाम इलाकों से आदिवासी और ग्रामीण लोग अपने-अपने पशुओं के साथ मेले में शरीक होने आते हैं।
मेला रेत के विशाल मैदान में लगाया जाता है। आम मेलों की ही तरह ढेर सारी कतार की कतार दुकानें, खाने-पीने के स्टाल, सर्कस, झूले और न जाने क्या-क्या। ऊंट मेला और रेगिस्तान की नजदीकी है इसलिए ऊंट तो हर तरफ देखने को मिलते ही हैं। लेकिन कालांतर में इसका स्वरूप एक विशाल पशु मेले का हो गया है, इसलिए लोग ऊंट के अलावा घोड़े, हाथी, और बाकी मवेशी भी बेचने के लिए आते हैं। सैलानियों को इन पर सवारी का लुत्$फ मिलता है। लोक संस्कृति व लोक संगीत का शानदार नजारा देखने को मिलता है।
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