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सिन्धु सरस्वती सभ्यता - Sindhu Ghati Sabhyata Question
- सिन्धु सरस्वती सभ्यता
- Sindhu Ghati Sabhyata Question
- सिन्धु-सरस्वती सभ्यता की विशेषताएँ
- नगर नियोजन-
Sindhu Ghati Sabhyata Question
भारत की सभ्यता - Sindhu Ghati Sabhyata Question
सिन्धु सरस्वती सभ्यता - Sindhu Ghati Sabhyata Question
भारत विश्व के सबसे प्राचीन देशों में से एक है। इसका इतिहास, इसकी सभ्यता तथा इसकी संस्कृति बहुत प्राचीन है पुरातात्विक आधारों पर पुरातत्वविदों ने यह पता लगा लिया है कि आज से लगभग पाँच–सात हजार वर्ष पहले भारत की प्रमुख नदियों जैसे सरस्वती, सिन्धु व उसकी सहायक नदियों के किनारों पर विचरण करने वाले मानव समूहों ने अपनी स्थाई बस्तियाँ बसा कर रहना आरंभ कर दिया था और इन बस्तियों में रहते हुए उन्होंने उन्नत सभ्यता व संस्कृति का विकास कर लिया था।

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सिन्धु नदी का उद्गम तिब्बत के कैलाश मानसरोवर के उत्तर में स्थित सेन्गेखबब, सिंहमुख व हिमनद से माना जाता है। सरस्वती नदी का उद्गम शिवालिक की पहाड़ियों से माना जाता है। यहाँ से यह आदिबद्री के पास मैदान में प्रवेश करती है। तथा यह दक्षिण-पश्चिम दिशा में बहती हुई कुरुक्षेत्र, घग्घर, हाकड़ा होती हुई हरियाणा के सिरसा स्थान से राजस्थान के नोहर में प्रवेश करती थी। यहाँ से बीकानेर व जैसलमेर होती हुई, गुजरात के कच्छ के रन में प्रवेश कर . प्रभासपत्तन के पास समुद्र में गिरती थी। वर्तमान में सरस्वती नदी भौतिक रूप से अस्तित्व में नहीं है।
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भू-संरचना में परिवर्तन के कारण यह विलुप्त हो गई। वर्तमान में अस्तित्व में नहीं होने के कारण कतिपय विद्वान सरस्वती नदी को मात्र कल्पना मानते रहे हैं, लेकिन भू-उपग्रह द्वारा खींची गई तस्वीरों से सरस्वती नदी के बहाव क्षेत्र का अब पता लग गया है तथा अन्तः सलिला के रूप में आज भी यह प्रवाहित है।

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वैदिक साहित्य, रामायण व महाभारत में सरस्वती नदी के अस्तित्व के पर्याप्त प्रमाण उपलब्ध होते हैं। महाभारत युद्ध के समय कृष्ण के भाई बलराम ने सरस्वती नदी पर स्थित तीर्थों की यात्रा की थी, इसका विवरण प्राप्त होता है। राजस्थान के मरुप्रदेश में भी सरस्वती नदी के किनारे बसे कई नगरों के पुरातात्विक अवशेष आज भी विद्यमान हैं। कालीबंगा उनमे से एक है।
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सिन्धु व सरस्वती नदी तथा इनकी सहायक नदियों के विस्तृत भू भाग में विकसित मानव सभ्यता को सिन्धु-सरस्वती सभ्यता के नाम से जाना जाता है। इस विकसित सभ्यता के बारे में पहले किसी को पता नहीं था कि भारत भी प्राचीन सभ्यता का प्रमुख केन्द्र रहा है।
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यह सभ्यता मिट्टी के टीलों में दबी हुई थी। मिटटी के टीलों में दबी इस सभ्यता का काल कौन सा था? यह कब चरमोत्कर्ष पर थी और कब इसका अवसान हुआ? इस बार म विद्वानों में मतैक्य नहीं है, लेकिन मोटे तौर से यह माना जाता है कि इस सिन्धु-सरस्वती सभ्यता का जन्म काफी पहले हुआ था और 3250 ईसा पूर्व तक यह पूर्ण रूप से विकसित हो गई थी इसके बाद यह 3250 से 2750 ईसा पूर्व तक चरम विकास पर पहुँच गई थी। फिर 2750 ईसा पूर्व के बाद इस सभ्यता का अवसान आरंभ हुआ और 1500 ई. पूर्व तक आते-आते यह विलुप्त हो गई।
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भारत के पुरातत्व विशेषज्ञों और इतिहासकारों - स्वतंत्र भारत में सन् 1947 के बाद नये ढंग से कार्य प्रारम्भ किया। पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और गुजरात में सिन। घाटी और उसके पहले तथा समानान्तर प्रणाली पर विकसित होने वाली सरस्वती दृषद्वति नदी घाटी से सम्बन्धित कई
स्थल खोज निकाले। सन् 1953 में अमलानन्द घोष राजस्थान के बीकानेर संभाग में लगभग 25 पुरातात्विक स्थलों की खोज की, जिसमें सबसे प्रमुख कालीबंगा है।
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पंजाब में रोपड़, बाड़ा, संधोल, गुजरात में रंगपुर, लोथल, रोजदी, हरियाणा में राखीगढ़ी, बनवाली, मीताथल आदि स्थानों पर सिन्धु सरस्वती सभ्यता के अवशेष मिले हैं।

सिन्धु-सरस्वती सभ्यता की विशेषताएँ - Sindhu Ghati Sabhyata Question
(अ) नगर नियोजन- सिन्धु-सरस्वती सभ्यता के विकसित और उन्नत स्तर को प्रकट करने वाले अवशेषों में सबसे महत्वपूर्ण अवशेष इस सभ्यता से सम्बंधित नगरों के है। ऐसे नगरावशेषों में हड़प्पा व मोहनजोदड़ो (दोनों अब पाकिस्तान में) कालीबंगा (राजस्थान) राखीगढी (हरियाणा) तथा धोलावीरा लोथल (गुजरात) के अवशेष अत्यधिक महत्वपूर्ण है।
इन नगरों के अवशेषों से यह तथ्य भी उद्घाटित होता है कि सिन्धु-सरस्वती सभ्यता काल के भारतवासी पहले योजना बनाकर अपने नगरा और नगरों में निर्मित किए जाने वाले भवनों व आवास। का निर्माण करते थे। उनका भवन निर्माण कला सम्बंधी ज्ञान आधुनिक स्थापत्य अभियांत्रिकी (सिविल इंजीनियरिंग) के स्तर का था।
(i) नगर की आवास योजना- सिन्धु- सरस्वती सभ्यता के नगरों की सुव्यवस्थित सड़क प्रणाली
परिणामस्वरूप स्वतः नगरों की आवास योजना में एक व्यवस्था उत्पन्न हो गयी थी और नगर कई खण्डों और मोहल्लों में विभक्त होकर सुनियोजित स्वरूप में उभर गए थे। सामान्यतया प्रत्येक मकान में बीच में खुला आंगन रखा जाता था और आँगन के चारों तरफ कमरे बनाए जाते थे। लगभग सभी मकानों में पानी रखने के फिरोने या परेंडे, शौचालय और स्नानघर अलग से निर्मित होते थे।
(ii) सड़क व्यवस्थाः- सिन्धु-सरस्वती सभ्यता से सम्बद्ध नगरों की सड़कें पूर्व से पश्चिम तथा उत्तर से दक्षिण की तरफ सीधी समानान्तर निर्मित की गयी थी। सड़कें एक दूसरे को समकोण पर काटती थी, जहाँ.. चौराहे बने हुए थे। नगरों की मुख्य और बड़ी सड़क सामान्यतया 10 मीटर, छोटी सड़कें 5 मीटर तथा गलियाँ एक से दो मीटर तक चौड़ी होती थी। सड़कों के किनारों पर स्थान-स्थान पर कूड़ा-कचरा डालने के लिये कूड़ादान रखे रहते थे।
(iii) नगर की सफाई, जल निकास प्रणाली और स्वच्छता का प्रबन्धः- सिन्धु-सरस्वती सभ्यता से सम्बंधित नगरों और नगरों के मकानों में स्वच्छता और सफाई की समुचित व्यवस्था देखने को मिलती है। नगरों की गलियों, सड़कों और मुख्य सड़कों पर बनी छोटी-बड़ी नालियों और गटरों से सहज में ही यह अनुमान लगाया जा सकता है कि मकानों, मोहल्ला और पूरे नगर से गन्दा पानी बाहर निकालने की समुचित व्यवस्था थी।
रोजमर्रा का कूड़ा -कचरा डालने के लिए सड़कों पर जगह-जगह कूडापा। रखे जाते थे। सिन्धु-सरस्वती सभ्यता के नगरों में निजी मकानों एवं नगरों में सार्वजनिक सफाई और स्वच्छता का जो प्रबन्ध नजर आता है, उससे यह साफ जाहिर होता है कि सिन्धु-सरस्वती सभ्यता काल में भारतवासियों का जीवन उच्च स्तर का था। वे शोभा और दिखावे के स्थान पर सुविधा और उपयोगिता को अधिक महत्व देते थे और स्वास्थ्य के प्रति जागरूक थे।
(iv) विशेष निर्मितियाँ:-सिन्धु-सरस्वती सभ्यता । काल के विभिन्न नगरों की पुरातात्विक खुदाई में कुछ विशेष प्रकार की निर्मितियाँ, भवन और इमारतों के भग्नावशेष निकले हैं। इसमें नगर की गढ़ी वाले भाग में रक्षा प्राचीर धातु पिघलाने के स्थान, भट्टियाँ, यज्ञवेदियाँ, विशाल स्नानागार तथा विशाल अन्नागार आदि प्रमुख हैं | ये अवशेष सभ्यता की उन्नत अवस्था व वैज्ञानिकता का प्रमाण हैं।
(आ) सामाजिक जीवनः- सिन्धु-सरस्वती सभ्यता से सम्बंधित विभिन्न स्थानों पर खुदाई में ऐसी कई वस्तुएं मिली हैं, जिनसे यह पता चलता है कि उस काल में समाज कई प्रकार के काम-धन्धे करने वाले लोगों से मिलकर बना था। व्यक्ति अपनी योग्यता के अनुसार विभिन्न कार्य कर सामाजिक व्यवस्था को बनाये रखने में अपना योगदान देता था। धार्मिक, प्रशासनिक, चिकित्सा, सुरक्षा तथाउत्पादन प्रमुख कार्य थे।
(इ) परिवार व्यवस्था :-सिन्धु-सरस्वती सभ्यता काल के भवनों व मकानों की व्यवस्था के आधार पर यह स्पष्ट होता है कि उनके समाज की प्रमुख इकाई परिवार था बहुत अधिक संख्या में नारियों की मूर्तियाँ मिलने से यह माना जाता है कि सिन्धु -सरस्वती सभ्यता के काल के समाज और परिवार में नारी को सम्मानजनक स्थान प्राप्त था।
पर्दा प्रथा प्रचलित नहीं थी। स्त्रियाँ चाँदी व तांबे के आभूषण पहनती थी। ये लोग सूती वस्त्र पहनते थे। इन्हें अस्त्र-शस्त्र का ज्ञान भी था। मनोरंजन के साधनों में संगीत, नृत्य व शिकार प्रमुख थे। सिन्धु-सरस्वती सभ्यता के लोग गेहूँ, जौ, चावल, दूध तथा मांसाहार का भोजन में उपयोग करते थे।
आर्थिक जीवन :- - Sindhu Ghati Sabhyata Question
(i) कृषि व पशुपालन-कालीबंगा में जुते हुए खेत के अवशेष मिले हैं। इससे लगता है किसिन्धु-सरस्वती सभ्यता के लोग खेती करते थे। वस्तुओं पर बने चित्रों के आधार पर पता चलता है कि सिन्धु-सरस्वती सभ्यता काल के लोग गेहूँ, जौ, चावल, तिल आदि की खेती करते थे। फल भी उगाते थे। कृषि के साथ पशुपालन सिन्धु-सरस्वती सभ्यता से सम्बद्ध लोगों का दूसरा मुख्य व्यवसाय था। पालतू पशुओं में गौ वंश का महत्व अधिक था।
(ii) व्यापार व वाणिज्य- यहाँ के निवासी तांबे व कांसे के बर्तन व औजार बनाने के साथ ही मिट्टी के बर्तन व मटके बनाने की कला में निपुण थे। चन्हुदड़ो तथा कालीबंगा की खुदाई में तोल के अनेक बाट मिले हैं। मोहनजोदड़ो में सीप की एक टूटी पटरी (स्केल) मिली है। ये अवशेष उनके उन्नत और विकसित व्यापारिक एवं गणित सम्बंधी ज्ञान के परिचायक हैं।
गुजरात में लोथल नामक स्थान पर खुदाई में निकली एक गोदी (बन्दरगाह) के अवशेषों से पता चलता है कि यह समुद्री यातायात का प्रमुख केन्द्र था। मिस्र, सुमेर, सीरिया आदि दूर देशों से इनके घनिष्ठ व्यापारिक सम्बन्ध थे। भारत व मेसोपोटामिया की खुदाई से प्राप्त वस्तुओं में समानता का मिलना इस बात का प्रमाण है कि उनमें आपस में वस्तुओं का क्रय-विक्रय होता था। व्यापार की उन्नत व्यवस्था के कारण ही सिन्धु-सरस्वती सभ्यता को व्यापार प्रधान सभ्यता कहा जाता है।
5) धार्मिक जीवन:- - Sindhu Ghati Sabhyata Question
सिन्धु-सरस्वती सभ्यता काल के लोग प्रमुख रूप से प्राकृतिक शक्तियों के उपासक थे तथा पृथ्वी, पीपल, नीम, जल, सूर्य, अग्नि आदि में देवी शक्ति मानकर उनकी उपासना करते थे। मूर्तियों और मुद्राओंतथा ताबीजों के विश्लेषण के आधार पर यह स्पष्ट होता है कि बलि प्रथा तथा जादू-टोना आदि अन्धविश्वास भी प्रचलित थे लोथल, बनावली एवं राखीगढ़ी से प्राप्त अग्नि वेदिकाओं से लगता है कि वहाँ यज्ञों व अग्नि पूजा का प्रचलन रहा होगा। मूर्तियों की उपासना के लिए धूप जलाई जाती थी। मातृदेवी व शिव की उपासना भी की जाती थी। मृतक संस्कार शव को गाढ़कर या दाह-कर्म करके किया जाता था।
(ऊ) सभ्यता का अवसान- - Sindhu Ghati Sabhyata Question
सिन्धु लिपि अभी सही ढंग से पढ़ी नहीं जा सकी है। अनुमान है कि इस सभ्यता का पतन प्राकृतिक कारणों से हुआ। वहाँ उस युग में रहने वाले निवासियों द्वारा परिश्रम से बनाए गए नगर भूपरिवर्तन से खण्डहर बन गए किन्तु उस अतीत में विकसित सभ्यता
और संस्कृति के तत्त्व नष्ट नहीं हो सके। उनका आगे आने वाले युगों में भारतीय जन-जीवन में परोक्ष प्रभाव बना रहा । भारतीय संस्कृति के प्रारम्भिक चरणों के निर्माण में सिन्धु-सरस्वती सभ्यता का महत्वपूर्ण योगदान रहा।
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